यह सब इसलिए कि अपनी चिर परिचित शैली से अलग इन दिनों गुलाम नबी आजाद जिन्हें कभी मजाक में काग्रेस का “गुलाम” कहा जाता था अब खुलकर  रेलिया कर रहे हैं और कांग्रेस के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से व्यंग बाण चला रहे हैं.

परिणाम स्वरूप उनकी रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है वही कांग्रेस आलाकमान के लिए यह एक चिंता का सबब बना हुआ है. लेकिन इन सबके बीच देश की सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी और उसका आलाकमान जम्मू कश्मीर में शायद राजनीति की चौपड़ पर एक नया इतिहास लिखने के लिए बेताब है.

वहयह भली भांति जानता है कि भाजपा अकेले दम जम्मू कश्मीर में सत्ता नहीं वरण कर सकती ऐसे में गुलाम नबी आजाद की गलबहियां उसे रास आएंगी.

इधर, कांग्रेस आलाकमान अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारता हुआ दिखाई दे रहा है जिस तरीके से पंजाब में अमरिंदर सिंह जैसे बड़े कद के राजनीतिक हस्ती को कांग्रेस ने घर बैठे बाहर का रास्ता दिखा करके कांग्रेस को कमजोर किया, जैसा आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के साथ और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना से पहले ममता बनर्जी के साथ शायद वही इतिहास की इबादत दोबारा लिखने के लिए कांग्रेस का भविष्य जम्मू कश्मीर में भी गुलाम नबी आजाद को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए लालायित है.

इन सब परिस्थितियों के बाद क्या जम्मू कश्मीर भी कांग्रेस के हाथों से बाहर नहीं निकल जाएगा?

आज हम इस रिपोर्ट में जम्मू कश्मीर की सियासी हलचल को लेकर के आपके समक्ष इस रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं जो यह बताएगा कि क्या गुलाम नबी आजाद के “आजाद लब” जम्मू कश्मीर की राजनीति में कुछ नयी आवाज बुलंद करने जा रहे हैं. आगामी परिसीमन के बाद जब चुनाव होंगे तो क्या मुख्यमंत्री के रूप में गुलाम नबी आजाद शपथ लेंगे.

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गुलाम नबी आजाद की “आजादी”

राजनीतिक जानकार यह अच्छी तरह जानते हैं कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के एक ऐसे चेहरे हैं जो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद अब सोनिया गांधी और राहुल के साथ भी घुले मिले हुए हैं. इस सब के बावजूद कांग्रेस पार्टी में “जी 123” का जो एक अलग कॉकस सामने आया है इसमें गुलाम नबी आजाद की उपस्थिति यह दर्शाती है कि उनके नाम में आरंभ भले ही गुलाम शब्द से होता है मगर वह हृदय से एक आजाद तबीयत के शख्स है. यही कारण है कि उन्होंने एक कर्तव्यनिष्ठ सच्चा कांग्रेसी होने के नाते कांग्रेस आलाकमान को आगाह किया कि अगर कांग्रेस को देश का नेतृत्व संभालना है तो पार्टी को महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए. मगर कांग्रेस ने इन सब चीजों को नकारा, अब हालात यह है कि जम्मू-कश्मीर में आजाद 4 दिसंबर तक लगातार  रैलियां करते रहे उनमें भारी भीड़ भी जुटती रही.यहां  स्पष्ट दिखाई दिया कि किस तरह गुलाम नबी आजाद को जम्मू कश्मीर की आवाम अपना समर्थन दे रही है. उन्होंने अपने विभिन्न भाषणों में कुछ महत्वपूर्ण बातें कही है और राजनीतिक संकेत भी दिए हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि जहां वे कांग्रेस के प्रति आक्रामक है वहीं भाजपा के प्रति नरम दिखाई दे रहे हैं . नरेंद्र मोदी  देश की सरकार ने सबसे बड़ी रियासत जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट दिया और केंद्र शासित राज्य बना दिया. इस पर आजाद अब मौन हैं.

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दूसरी तरफ उनके खासम खास सारे बड़े नेता कांग्रेस को आंख दिखाते हुए पार्टी को लगातार छोड़ रहे हैं जिसका स्पष्ट संकेत यह है कि आने वाले समय में आजाद एक नई पार्टी का आगाज करने वाले हैं.

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