Story In Hindi, लेखक - सुनील
‘‘जरा यहां गाड़ी रोकना...’’ मीना के इतना कहते ही ड्राइवर ने झट से ब्रेक लगा दिए.
‘गांव तो अभी डेढ़ किलोमीटर दूर है. मैडम ने अभी एकदम से गाड़ी क्यों रुकवाई?’ आईएएस मीना की इस पहेली से जूझते ड्राइवर मनोहर ने सोचा.
मीना गाड़ी से बाहर निकलीं. कच्ची सड़क पर अभी भी धूल उड़ रही थी. तेज धूप में उन्होंने अपने काले चश्मे लगाए और एक खेत की पगडंडी की तरफ चल दीं. जब उन के साथ के लोग पीछेपीछे आने लगे, तो उन्होंने बिना मुड़े ही हाथ के इशारे से उन्हें रोक दिया.
उस पगडंडी पर तकरीबन 100 मीटर दूर एक ट्यूबवैल नजर आ रहा था. पानी चल रहा था. धान की फसल में पानी छोड़ा गया था. भरी दोपहर में वहां कोई नहीं था. एक पेड़ की छांव में कुत्ता ऊंघ रहा था.
जब मीना उस कुत्ते के करीब से गुजरीं, तो उस के कान खड़े हो गए. एक बार आंखें खोलीं और फिर सुस्ताने लगा. उस की सांसें धौकनी की तरह बड़ी तेज चल रही थीं.
मीना थोड़ा आगे बढ़ीं और उस ट्यूबवैल के पास जा कर खड़ी हो गईं.
दूर खड़े स्टाफ ने सोचा कि मैडम को प्यास लगी होगी, पर पानी तो गाड़ी में भी रखा था, वह भी बोतलबंद, तो इतनी दूर जाने की क्या जरूरत थी?
उधर आईएएस मीना के मन में बड़ी कशमकश थी और कुछ पुरानी यादें भी, जो आज भी नासूर बन कर उन को टीस दे रही थीं.
आज से 10 साल पहले की बात है, जब 15 साल की मीना सरकारी स्कूल में 10वीं जमात में पढ़ती थी. पढ़ाई में बड़ी होशियार, पर जाति से दलित थी, तो उस के तेज दिमाग की कोई कीमत नहीं थी.
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