Story In Hindi: मंथन की एक राशन की दुकान थी. यह दुकान महल्ले में ही थी, जिस से अगलबगल के लोग सामान खरीद कर ले जाते थे.

मंथन की यह दुकान बहुत पुरानी थी. उस के दादापरदादा के समय की, जिस में पुरानी काठ की लकडि़यों का फर्नीचर था. हर साल दीवाली पर पेंट होने से दुकान अच्छी कंडीशन में थी.

जब से मंथन ने दुकान संभाली थी, तब से वह ग्राहकों पर खास ध्यान देने लगा था. वह सब ग्राहकों से मुसकरा कर बातें करता था. उस के बात करने के तरीके में एक तरह का अपनापन था. लिहाजा, सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

मंथन के पिताजी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी थी. लिहाजा, ज्यादातर मंथन ही दुकान पर बैठता था. एक दिन की बात है. खुशबू, जो रजत की बहन थी, सामान लेने मंथन की दुकान पर गई.

मंथन की कदकाठी बढि़या और चेहरा बहुत ही खूबसूरत था. गोरा रंग, घुंघराले बाल, लंबी नाक, चौड़ी छाती. टीशर्ट और लोअर में भी वह काफी फब रहा था.

रजत के पिताजी अजय बाबू पहले घर का राशनपानी लेने मंथन के यहां जाते थे, लेकिन इधर अब वे भी बीमार रहने लगे थे. रजत को औफिस के कामों से ही समय नहीं मिल पाता था, तो वह भला राशनपानी कैसे ला पाता.

रजत की नईनई शादी हुई थी, लिहाजा, वे लोग नईनवेली बहू को घर से बाहर भेजना ठीक नहीं सम झते थे. सौदा लाने के लिए अब खुशबू ही मंथन की दुकान पर आनेजाने लगी थी.

उस दिन जब खुशबू ने मंथन को देखा, तो देखती ही रह गई. सामान ले कर वह कब की घर पहुंच चुकी थी, लेकिन उस का मन घर में नहीं लग रहा था. बारबार उस का ध्यान मंथन की पर्सनैलिटी को देख कर री झा जा रहा था.

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