रामसकल का अपने गांव और आसपास के इलाके में रुतबा था. कुछ समय पहले घर की माली हालत अच्छी नहीं थी, लेकिन रामसकल के 2 भाइयों के बैंकौक जा कर पैसा कमाने से पासा पलट गया और पतझड़ बने घर में हरियाली छा गई.
पैसों की कमी नहीं होने पर रामसकल एक ईंट भट्ठा खोल कर घर पर ही पैसों की बरसात करने लगे. घर के बाहर समाज में सब से अच्छे बरताव से रहना उन की दिनचर्या बन गई. इस तरह चारों दिशाओं से इज्जत और दौलत मिलने लगी.
गांव में प्रधान के चुनाव का समय आ गया था. रामसकल के मन में भी प्रधान बनने के अंकुर फूटने लगे थे.
कुछ लोगों से इस बारे में बात भी की. सभी लोग रजामंद हुए और खुश भी, क्योंकि रामसकल दीनदुखियों की मदद करते थे. सब को लगता था कि अगर वे प्रधान बन जाएंगे, तो गांव की हालत सुधर जाएगी.
धीरेधीरे चुनाव का समय आ गया. जोरशोर से चुनाव का प्रचार हो रहा था. रामसकल का गांव 7 मोहल्लों में बंटा हुआ था. उन के विपक्ष में दूसरे मोहल्लों के 3 उम्मीदवार खड़े थे. जब चुनाव का नतीजा आया, तो रामसकल भारी वोटों से जीते थे.
सभी लोगों ने उन्हें फूलमालाओं से लाद दिया था. कुछ लोग उन्हें अपने कंधों पर उठा कर नाचने लगे. जीत की खुशी में शाम को उन के घर जम कर पार्टी हुई. जो जैसा था वैसा शाकाहारी, मांसाहारी और शराब का मजा लिया.
समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहा. रामसकल घरघर जा कर सभी की समस्याओं को सुनते और हल करते.
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