नीलेंदु ने अभ्यागत को निहारा,
‘‘क्या है?’’
जयेश ने पूछा, ‘‘सर, आप छात्र संघ चुनाव के इंचार्ज हैं?’’
नीलेंदु ने सांस छोड़ कर कहा, ‘‘हां, हूं.’’
जयेश ने कहा, ‘‘सर, मु?ो महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि बनने के लिए चुनाव लड़ना है.’’
नीलेंदु ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, ‘‘सही में...?’’
जयेश बोला, ‘‘जी सर.’’
नीलेंदु ने विस्मय से कहा, ‘‘ठीक है.’’
उन्होंने एक रजिस्टर अपनी डैस्क से निकाला और उस में एंट्री करते हुए कहा, ‘‘लेकिन, मैं तुम्हें बता दूं कि तुम किस के विरुद्ध खड़े हो रहे हो - अनुरंजन नावे.’’
जयेश को कोई फर्क नहीं पड़ा, ‘‘तो...?’’
प्राध्यापक नीलेंदु ने कहा, ‘‘छात्र संघ में सभी उसे पसंद करते हैं.’’
जयेश इस बात से अनजान था. नीलेंदु ने पहली बार चुनाव लड़ने वाले इस छात्र का मनोबल परखना चाहा, ‘‘यह चुनाव लोकप्रियता पर निर्भर है. दरअसल यह लोकप्रियता प्रतियोगिता होती है. जो ज्यादा लोकप्रिय होता है, वही जीतता है.’’
यह सुन कर जयेश की भौहें तन गईं. नीलेंदु ने और हथौड़े का प्रहार किया, ‘‘स्नातकोत्तर छात्र है अनुरंजन. कितने वर्ष गुजारे हैं उस ने इस महाविद्यालय में और तुम तो अभीअभी आए हो. तुम्हें तो कोई जानता तक नहीं. मु?ो भी नहीं पता कि तुम कौन हो?’’
जयेश ने कठोरता से कहा, ‘‘चुनाव लोकप्रियता के बारे में नहीं होने चाहिए. उन्हें इस बारे में होना चाहिए कि किस के पास सब से अच्छे विचार हैं.’’
नीलेंदु ने मुंह बनाया, ‘‘और, तुम्हारे क्या विचार हैं?’’
जयेश ने तुरंत उत्तर दिया, ‘‘खेल पर कम खर्च और विज्ञान पर ज्यादा.’’
नीलेंदु उसे देखता रह गया.
शाम को जब जयेश की मुलाकात अपने मित्रों से हुई तो उस ने उन्हें इस प्रकरण से अवगत कराया, ‘‘मैं ने निश्चय किया है कि छात्र प्रतिनिधि का चुनाव लड़ं ूगा.’’
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