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?लैब इंचार्ज बिना कुछ कहे वहां से

चला गया.

2 दिनों के बाद, दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच भरी सभा में वादविवाद रखा गया था. दोनों को अपनेअपने पक्षों को रखने का मौका था. प्रांगण खचाखच भरा हुआ था. सारा महाविद्यालय उमड़ आया था. मस्ती का माहौल था. छात्रों में उत्साह था. हर्षोल्लास के साथ इस वादविवाद को देखने के लिए वे पहुंचे थे.

 

चुनाव के इंचार्ज नीलेंदु सर ने माइक पर घोषणा की, ‘‘छात्र प्रतिनिधि का चुनाव लड़ रहे दोनों उम्मीदवार, अनुरंजन और जयेश, अपनाअपना तर्क आप के सामने रखेंगे. ये लोग आप के अपने छात्र प्रतिनिधि हैं, आप की समस्याओं का निवारण करने के लिए. आप ही के द्वारा चुने जाएंगे. इसीलिए ये जो भी कहेंगे, उन्हें ध्यान से सुनिएगा और सुनने के बाद, सोचविचार कर के ही अपना प्रतिनिधि चुनें. आप में से अधिकांश के लिए यह बिलकुल नया अनुभव होगा. सार्वजनिक वक्ता के साथ कृपया किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार न करें. न तो उन का उपहास उड़ाएं, न ही आक्रामक टिप्पणियों से उन्हें बेमतलब परेशान करें.’’ फिर थोड़ा रुक कर उन्होंने कहा, ‘‘सब से पहले अपने विचार आप के सामने रखेंगे हमारे स्नातकोत्तर विद्यार्थी, अनुरंजन नावे.’’

अनुरंजन अपनी जगह से उठ कर माइक के सामने आया तो जोरदार तालियों के साथ उस का स्वागत किया गया. जैसे संपूर्ण महाविद्यालय का वह बेताज बादशाह हो. तालियों की गड़गड़ाहट धीमी पड़ी तो उस ने सब से पहले नीलेंदु सर को धन्यवाद दिया, ‘‘मैं नीलेंदु सर का शुक्रिया अदा करता हूं कि मु?ो अपने विचार रखने के लिए उन्होंने यह मंच प्रदान किया. वादविवाद का आयोजन भी उन्होंने ही किया है. अपने प्रिंसिपल रत्नेश्वर, जिन का पूरा समय सब की समस्याओं को दूर करने में निकल जाता है, हमारे महाविद्यालय के मेहनती अध्यापकगण और मेरे साथी छात्र और मित्रगण. यह मेरा सौभाग्य है कि आप में से अधिकांश को मैं अपना दोस्त कह सकता हूं. आप सभी शायद मेरे बारे में सबकुछ पहले से ही जानते हैं. इसीलिए मैं आप से अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में बात करना चाहता हूं. वह हमारे कालेज में नए विज्ञान उपकरणों की पैरवी कर रहा है.’’

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