भारत के झारखंड राज्य का एक आदिवासी जिला है गोड्डा, जिसे 17 मई, 1983 को पुराने संथाल परगना जिले से बाहर बनाया गया था. इसी गोड्डा जिले का बसंत राय तालाब बहुत ज्यादा मशहूर है. यहां का बिसुआ मेला लोगों की जिंदगी में अलग ही रंग बिखेर देता है.

15 दिनों तक चलने वाले इस बिसुआ मेले की पौराणिक और ऐतिहासिक अहमियत है. मेले के दौरान तालाब में सुबह से ही आदिवासी और गैरआदिवासी लोग नहाना शुरू कर देते हैं.

साफा होड़ आदिवासी समुदाय के लोग तालाब में डुबकी लगाने के बाद सादा कपड़े पहन कर कांसे के बरतन में पूजा शुरू करते हैं. इस के बाद उन्हें मांस और शराब का सेवन छोड़ देना होता है.

इसी बसंत राय तालाब से चंद दूरी पर कुछ और ही नजारा था. रात के 8 बजे थे और तालाब से थोड़ा हट कर एक बड़ा शामियाना लगा हुआ था.

दरअसल, नजदीक के एक गांव के दबंग मुखिया श्याम मुर्मू ने हाल ही में पंचायत का चुनाव जीता था. अपने गुरगों को खुश करने के लिए उस ने वहां शराब, कबाब और शबाब का पूरा इंतजाम किया हुआ था.

श्याम मुर्मू का अपने इलाके में पूरा दबदबा था. वह जंगल से गैरकानूनी कमाई करता था. उस के बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध थे. जिले के एसपी मनोज सिंह से उस की यारी थी. वह खुद बहुत बड़ा औरतखोर था.

अपनी इसी हवस को पूरा करने के लिए श्याम मुर्मू ने आज वहां आरकैस्ट्रा भी बुलाया था, जिस में 2 जवान लड़कियां कम और तंग कपड़ों में फूहड़ गानों पर कमर मटका रही थीं. उन की मांसल देह, मादक डांस स्टैप और पाउडर व लिपस्टिक से लिपेपुते चेहरे बता रहे थे कि वे इस फील्ड की माहिर खिलाड़ी थीं.

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