दादी ने धमकी दी थी कि अगर अनुज और दिव्या की शादी न हुई तो वे सतीश की शादी में शामिल नहीं होंगी. अनुज को सम?ाया कि एक बार दिव्या को देख तो लो. सगाई कर लो. और सगाई का क्या, सगाइयां तो टूटती रहती हैं.
अनुज गांव गया दादी से मिलने. इस बार मकसद दिव्या को देखना था. दिव्या उसे दादी के घर में ही मिल गई. अनुज ने कभी बचपन में उसे देखा था. आज देखा तो नजरें नहीं हटा पाया. गोरा गुलाबी चेहरा बिना किसी मेकअप के दमक रहा था. बड़ीबड़ी आंखें, लंबी पलकों की ?ालरें, गुलाबी होंठ, कमर के नीचे तक ?ालती मोटी सी चोटी, सांचे में ढला बदन. जाने क्यों अनुज का जी चाहा कि उन नाजुक होंठों को छू कर देखे कि वह सचमुच गुलाबी हैं या लिपस्टिक का रंग है. उसी दिलकश रूप को आंखों में बसाए वह वापस आ गया और सगाई के लिए हां कर दी. एक हफ्ते बाद ही सगाई भी हो गई.
सगाई के लगभग एक महीने बाद ही एक ऐक्सिडैंट में दिव्या के मम्मीपापा की मौत हो गई. दिव्या तो दुख से अधमरी ही हो गई पर दादी ने उसे समेट लिया. अनुज और उस के मांबाप भी आए पर कुछ घंटे बाद ही लौट गए.
शहरों की अपेक्षा गांव में अभी भी मानवीय संवेदना बची है. दिव्या को यह एहसास ही नहीं होता कि वह अकेली है, अनाथ है. गांव की औरतें, सहेलियां दिनभर आतीजाती रहतीं. जाड़ों में आंगन में धूप में बैठती तो कितनी औरतें और लड़कियां उस के पास जुट जातीं. कोई चाय बना लाती तो कोई जबरदस्ती खाना खिला देती. रात को अनुज की दादी उस के साथ सोतीं.
धीरेधीरे उसे अकेले जीने की हिम्मत और आदत पड़ने लगी थी. घरबाहर मम्मीपापा की यादें बिखरी थीं, पर अब वह हर वक्त आंसू नहीं बहाती थी. मीरा भाभी के ही सु?ाव पर वह गांव के बच्चों को निशुल्क ट्यूशन पढ़ाने लगी थी. पर, एक सवाल था जो अब भी उसे रात को सोने नहीं देता था.
दिव्या के चाचा दूर रहते थे. वे जब गांव आए तो दादी से मिलने गए थे और उन से साफसाफ बात की थी, ‘अब तो भाईसाहब को गए भी 6 महीने से ज्यादा हो गए हैं. एक ही लड़की है. रिश्तेदारी के नाम पर सिर्फ मैं ही हूं. घर से काफी दूर रहता हूं. भाईसाहब की मौत पर आए थे स्वरूप साहब, फिर पलट कर कभी होने वाली बहू की सुध न ली. अकेली लड़की कैसे रह रही है, यह उन की भी तो जिम्मेदारी है. अब तो सुना है बड़े बेटे की शादी है अगले महीने. फिर छोटे की कब करेंगे?
‘विचार बदल गया है तो वह भी साफसाफ बता दें. अब तो गांव वाले भी बातें बनाते हैं कि सगाई टूट गई. बाप मर गया तो क्या, सबकुछ बेटी का ही तो है. अगर शादी न करनी हो तो वह भी बता दें. हमारी लड़की कोई कानीलूली न है. लाखों में एक है. लड़कों की कोई कमी न है.’
‘चिंता न कर गिरधारी, मैं अब की बार जा कर बात करती हूं. दिव्या को भी सुधीर की शादी में ले जा रही हूं. सब ठीक होगा,’ दादी ने कह तो दिया पर गहरी सोच में डूब गईं.