जयंती की शादी हुए 22 साल हो चुके थे और उस के 18 और 14 साल के 2 बेटे थे. जिंदगी के कितने मौसम बीत गए, पर उस के पति प्रमोद को न कोलियरी कैंटीन में चाय पीते कभी किसी ने देखा, न वह कभी बसंती होटल में घुघनीचोप खाते मिला. जयंती को औफिस गेट के अंदर उतार कर नाक की सीध में वापस घर चला जाता था, फिर ठीक 2 बजे उस की बाइक औफिस गेट के बाहर खड़ी नजर आती थी.
एक दिन अचानक प्रमोद की बाइक की दिशा में बदलाव हुआ. जयंती को औफिस गेट के अंदर छोड़ पर वापस घर लौट जाने वाली बाइक आज फिल्टर प्लांट की ओर मुड़ गई थी. अगले दिन से वही बाइक कभी कैंटीन के सामने खड़ी नजर आने लगी, तो कभी बसंती होटल के सामने.
जिस आदमी ने बसंती होटल में कभी कदम नहीं रखा था, वही अब उस होटल में घुघनीचोप गपागप खाने लगा था मानो बरसों का भूखा हो.
बसंती अंदर से बेहद खुश थी. उसे नया मालदार ग्राहक मिल गया था, ‘‘और कुछ खाने का मन करे तो फोन कर दीजिएगा, घर जैसा स्वाद मिलेगा. यह हमारा नंबर है, रख लीजिए…’’ बसंती ने ब्लाउज के भीतर से एक कागज की चिट निकाल प्रमोद के हाथ में थमा दी थी.
प्रमोद जयंती का पति है, यह बसंती को पता था. प्रमोद की बाइक की दिशा का बदलना और खुद प्रमोद में यह बदलाव अचानक से नहीं हुआ था. अचानक कुछ होता भी नहीं है. हर नर के पीछे एक नारी और हर शक के पीछे एक बीमारी वाली बात थी.
एक दिन जयंती को औफिस छोड़ कर प्रमोद घर लौट रहा था हमेशा की तरह, तभी रास्ते में उसे एक आदमी मिल गया. उस ने इशारे से प्रमोद को रुकने को कहा, फिर पास जा कर पूछ बैठा, ‘‘आप जयंती के पति हैं न?’’
‘‘हां, पर तुम कौन हो?’’
‘‘मेरा नाम रघु है.’’
‘‘क्या बात है?’’
‘‘भैया, भाभी पर नजर रखो. बड़े बाबू राजेश और उन के संबंधों को ले कर औफिस में बड़े गरमागरम चर्चे हैं.’’
‘‘क्या बकते हो, सुबहसुबह पी ली है क्या? होश में तो हो?’’ प्रमोद ने रघु का कौलर पकड़ लिया, ‘‘मेरी पत्नी के बारे में ऐसी बात कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’
रघु ने अपना कौलर छुड़ाते हुए
कहा, ‘‘मैं तो होश में हूं भैया, लेकिन जब सचाई जान लोगे तो तुम बेहोश
हो जाओगे.’’
‘‘अगर यह बात झूठ निकली, तो तुम्हें ढूंढ़ कर पीटूंगा.’’
‘‘जरूर पीटना, पर पहले अपनी पत्नी का पता करो,’’ इसी के साथ रघु खिसक लिया था. आज वह बेहद खुश था. महीनों से मन में जो गुबार था, वह बाहर निकल गया था. आज उस ने उस बात का बदला ले लिया था.
दरअसल, एक दिन सुबह रघु जयंती को कह बैठा था, ‘‘मैडम, कभीकभी आप बहुत जल्दी आ जाती हैं, कोई खास काम रहता होगा?’’
औफिस में रघु की पत्नी के बारे में सभी को पता था. रघु हर औरत में अपनी पत्नी का सा रूप देखने की ख्वाहिश लिए घूमता था, इसीलिए कभीकभी उसे करारा जवाब मिल जाता था.
‘‘तुम अपनी औकात में रहो और दूसरों की जासूसी करना छोड़ कर अपनी पत्नी की निगरानी करो… समझे तुम…’’ जयंती का यह उसी तरह का ताना था, जैसा महाभारत के एक प्रसंग में द्रौपदी ने दुर्योधन से कहा था कि अंधे का बेटा अंधा ही होता है. बाकी महाभारत का पता है आप को. वहां शकुनि था, यहां रघु शकुनि बनना चाह रहा था.
प्रमोद सोच में पड़ गया, पर किसी नतीजे पर पहुंच नहीं सका. उस ने रघु को तलाशा. पता चला कि पिछले 2 दिनों से वह काम पर ही नहीं आ रहा था.
यह भी पता चला कि रघु औफिस का चपरासी है और एक नंबर का पियक्कड़ भी. उस की खुद की पत्नी उस के बस में नहीं है. गांव में रहती थी, तब उस ने अपने 2 देवरों को फांस रखा था. रात को वह दोनों के बीच में सोती और रघु शराब पी कर रातभर आंगन में पड़ा रहता था. कुछ कहने पर पत्नी उसे देवरों से दौड़ादौड़ा कर पिटवाती थी.
शहर आने पर देवरों का संग तो छूटा, पर यहां भी उस ने एक बौयफ्रैंड रख लिया. कमाई खाए पति की, अंगूठा चूसे पड़ोसी का.
उस दिन के बाद से ही प्रमोद कुछ उखड़ाउखड़ा सा रहने लगा था. जयंती को औफिस में छोड़ वापस घर जाने का सिलसिला उस ने तोड़ दिया था और औफिस कैंपस के बाहर चारदीवारी से सटे गुलमोहर तो कभी लिप्टस के पेड़ों पर बंदर की तरह चढ़ कर बैठ जाता
और औफिस के बरामदे की ओर बगुले की माफिक टकटकी लगाए छिप कर देखता रहता.
लोग प्रमोद की ओर देखते और हंसते हुए आगे निकल लेते. उसे भरम होता कि कोई उसे नहीं देख रहा है, उलटे वह लोगों को अपनी ओर देखते हुए पा कर खुद को पेड़ की डालियों में छिपाने की नाकाम कोशिश करने लगता था.
औफिस आ रहे करमचंद बाबू ने एक दिन प्रमोद से कहा था, ‘‘हर रोज बंदरों की तरह पेड़ पर चढ़ कर क्या देखते हो?’’
‘‘तुम अपने काम से मतलब रखो न, कौन क्या कर रहा है, उस से तुम्हारा क्या लेनादेना है? अपना रास्ता नापो,’’ एकबारगी प्रमोद झुंझला उठा था.
‘‘क्या हुआ सर, मूड उखड़ा हुआ लग रहा है?’’ सामने से आ रहे सफाई मजदूर पूरनराम ने पूछा था.
‘‘अजीब सनकी लगता है…’’
‘‘कौन… वह जो पेड़ पर चढ़ा हुआ है? उसे मैं कभीकभी कैंटीन की तरफ भी घूमते हुए देखता हूं. एक दिन रघु के साथ बैठ कर कैंटीन में चाय पीते देखा, पर कभी खुश नहीं लग रहा था. जाने क्याक्या सोचता रहता है…’’