" पता नहीं, इन मर्दों की अक्ल कब ठिकाने आएगी. कब तक वे अपनी पत्नियों को गुलाम समझते रहेंगे. जमाना बदलता रहा, लोगों की जरूरतें बदलती रहीं, लोग धरती से चांद तक पहुंच गए, धरती पर जगह कम पड़ने लगी तो चांद पर घर बनाने की सोचने लगे, पर मर्द समाज की सोच नहीं बदली. वही आदिम सोच, वही गलत हरकतें और वही दबदबा.
‘‘खुद तो 10-10 औरतों के साथ कनैक्ट रहेंगे, संबंध रखेंगे, हाटबाजार, सिनेमाघर में घूमेंगे, लेकिन खुद की पत्नी गांव के देशी घी की तरह शुद्ध और पवित्र चाहिए...’’
‘‘क्या हुआ, यह सुबहसुबह किसे कोसे जा रही हो?’’
‘‘तुम्हें कोस रही हूं और किसे कोसूंगी. दूसरे को कोसने की क्या जरूरत पड़ी है मुझे. पत्नी की जासूसी करना, उस का पीछा करना यही तो काम रह गया है तुम मर्दों का. खुद तो काम करेंगे नहीं, पर कमाऊ पत्नियों का पीछा जरूर करेंगे,’’ आंगन में झाड़ू लगा रही जयंती ने अपने पति प्रमोद की ओर देखते हुए व्यंग्यबाण चला दिया.
पेट हलका करने वाशरूम जा रहे प्रमोद का मानो पैर भारी हो गया. वह ठिठक कर रुक गया. उस का प्रैशर रुक गया और उस का चेहरा सफेद पड़ गया.
‘‘क्या हुआ? मेरी बात सुनते ही सुबह की बेला में तुम्हारे चेहरे पर ये बारह क्यों बज गए? जल्दी जाओ,’’ झाड़ू लगा रही जयंती की नजरें प्रमोद पर चिपक गईं और प्रमोद पसीनापसीना हो गया. एकदम से उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.
‘‘अरे, मैं तुम्हारी बात नहीं, बल्कि मीरा के पति की बात कर रही हूं. तुम टैंशन मत लो, जाओ वरना तुम्हारा बीपी भी हाई हो जाएगा...’’
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