चौधरी जगवीर सिंह की हवेली गांव की शान थी. उन की बेटी सावित्री चुपचाप लेटी रात के अंधेरे में कई सवालों को सुलझाने की कोशिश कर रही थी. इस वक्त उस के दिलोदिमाग में एक नई रोशनी जगमगाने लगी थी. उस की आंखों में घुटन और पीड़ा के आंसू सूख चुके थे. राम किशन पर हुए जुल्म की याद उस के लिए बहुत दुखदायी थी, पर अब इस जुल्म के खिलाफ वह उठ खड़ी हुई थी.
‘पैदाइश से कोई छोटा या बड़ा कैसे हो सकता है? अच्छे घर में जन्म लेने से ही कोई बड़ा नहीं हो जाता,’ यह सोचते हुए सावित्री को लगा कि तीखे कांटों वाली कोई जिंदा मछली उस के गले में फंस गई है. वह फूटफूट कर रो पड़ी.
सावित्री को राम किशन की नजदीकी एक अजीब सी खुशी से भर देती थी. वह सोचने लगी कि वह जातपांत के बंधनों को झूठा साबित करेगी, चाहे उसे कितना भी दुख क्यों न झेलना पड़े. वह इस कालिख को धो डालेगी.
सावित्री की यादों में राम किशन का उदास चेहरा छाने लगा और उसे लगा कि हमेशा की तरह वह आंगन में पड़े तख्त पर बैठा है. पिताजी उस से कह रहे हैं, ‘क्यों रे राम किशन... तू छोटी जात वालों के घर कहां से पैदा हो गया? गांवभर में ब्राह्मण, बनियों का कोई भी लड़का है तेरे जोड़ का... न सूरत में और न सीरत में?’
तब सावित्री की आंखों में तारे नाच उठे थे. ऐसा लगता था जैसे चारों ओर रंगबिरंगे फूल खिल उठे हों. एक राम किशन ही तो था, जिसे हवेली में आनेजाने की इजाजत थी. यह सब सावित्री को सोचतेसोचते नींद आने लगी.