आलिया एक ऐसे परिवार की बेटी थी, जिसे घर का काम न करने पर खुद अपनी मां से ताने सुनने पड़ते थे, ‘‘काम से जी चुरा कर स्कूल मत जाया कर. आज अगर यह काम नहीं हुआ, तो स्कूल नहीं जाने दूंगी.’’
आलिया को बचपन से ही पढ़ाई का बेहद शौक था. स्कूल में मैडमों से हमेशा उसे आगे बढ़ने का हौसला मिला. घर में छोटेबड़े भाईबहनों के बीच वह खुश और मस्त रहती थी. भाई बड़े हो कर भी उस का कहना मानते थे और बहनें छोटी थीं, इसलिए छोटी तीनों बहनों को तो उस का कहना मानना ही था.
धीरेधीरे आलिया की समझ में आया कि पिता की माली हालत का कमजोर होना उन की गरीबी की मूल वजह है, इसलिए आलिया ने पिता को अपना काम बदलने की सलाह दी. उस ने उस काम से जुड़े साधन जुटा कर पिता को आगे बढ़ाया.
पिता जैसेतैसे नया कारोबार करने लगे. इस से हालात में थोड़ा बदलाव हुआ.
घर में आम जरूरतों का पूरा होना भी मुश्किल था. ऐसे में शौक या दूसरी जरूरतों के बारे में कैसे सोचा जाए? कभीकभी तो सूखी रोटी के टुकड़े को भिगो कर उस पर नमकमिर्च डाल गरम कर चूरमा बना कर खाने की नौबत आ जाती थी.
4 बेटियां और 3 बेटे, 9 सदस्यों के लिए दो वक्त की रोटी किसी छोटे कारोबार से रुपए कमा पाना काफी मुश्किल था. उस में भी जरा ज्यादा पैसे आए कि पिता बाहर जरूरतमंदों को देने में खर्च कर देते. इसलिए घर की जरूरतें अधूरी ही रह जातीं.
धीरेधीरे बच्चे बड़े होने लगे. बूआ के यहां उन के बड़े बेटे की शादी हो गई. एक दिन मां की इच्छा जान कर आलिया को भी लगा कि उस से बड़े भाई की शादी हो जानी चाहिए, पर घर, तेल के खाली पीपों के पत्तरों से बनी हुई एक झोंपड़ी के सिवा कुछ नहीं था, जिस की छत पर प्लास्टिक की पन्नी और टूटेफूटे कवेलू थे.
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