नैना थी ही इतनी खूबसूरत. चंपई रंग, बड़ीबड़ी आंखें, पतली नाक, छोटेछोटे होंठ. वह हंसती तो लगता जैसे चांदी की छोटीछोटी घंटियां रुनझुन करती बज उठी हों. उस के अंगअंग से उजाले से फूटते थे.

राहुल और नैना दोनों शहर के बीच बहते नाले के किनारे बसी एक झुग्गी बस्ती में रहते थे. नीचे गंदा नाला बहता, ऊपर घने पड़ों की ओट में बने झोंपड़ीनुमा कच्चेपक्के घरों में जिंदगी पलती. बड़े शहर की चकाचौंध में पैबंद सी दिखती इस बस्ती में राहुल अपने मातापिता और छोटी बहन के साथ रहता था और यहीं रहती थी नैना भी.

राहुल के पिता रिकशा चलाते, मां घरघर जूठन धोती. नैना की मां भी यही काम करती और उस के बाबा पकौड़ी की फेरी लगाते.

नैना बड़े चाव से पकौड़ी बनाती, खट्टीमीठी चटनी तैयार करती, दही जमाती, प्याज, अदरक, धनिया महीनमहीन कतरती और सबकुछ पीतल की चमकती बड़ी सी परात में सजा कर बाबा को देती.

बाबा परात सिर पर उठाए गलीगली चक्कर काटते. दही, चटनी, प्याज डाल कर दी गई पकौड़ी हाथोंहाथ बिक जातीं.

नैना के बाबा को अच्छे रुपए मिल जाते, पर हाथ आए रुपए कभी पूरे घर तक न पहुंचते. ज्यादातर रुपए दारू में खर्च हो जाते. फिर नैना के बाबा कभी नाली में लोटते मिलते तो कभी कहीं गिरे पड़े मिलते.

ऐसे गलीज माहौल में पलीबढ़ी नैना की खूबसूरती पर हालात की कहीं कोई छाया तक नहीं झलकती थी. राहुल सबकुछ भूल कर नैना को एकटक देखता रह जाता था.

नैना के दीवानों की कमी न थी. कितने लोग उस के आगेपीछे मंडराया करते, पर उन में राहुल जैसा कोई दूसरा था ही नहीं.

राहुल भी कम सुंदर न था. भला स्वभाव तो था ही उस का. गरीबी में पलबढ़ कर, कमियों की खाद पा कर भी उस की देह लंबी, ताकतवर थी. एक से एक सुंदर लड़कियां उस के इर्दगिर्द चक्कर काटतीं, पर कोई किसी भी तरह उसे रिझा न पाती, क्योंकि उस के मन में तो नैना बसी थी.

नैना के मन में बसी थी हीरे की अंगूठी. उसे बचपन से हीरे की अंगूठी पहनने का चाव था. सोतेजागते उस के आगे हीरे की अंगूठी नाचा करती. अपनी इसी इच्छा के चलते एक दिन नैना ने सारे बंधन झुठला दिए. प्रीति की रीति भुला दी.

बस्ती के एक छोर पर पत्थर की टूटी बैंच पर नैना बैठी थी. काले रंग की छींट की फ्रौक पहने, जिस पर सफेद गुलाबी रंग के गुलाब बने थे. फ्रौक की कहीं सिलाई खुली, कहीं रंग उड़ा, पर वह पैर पर पैर चढ़ाए किसी राजकुमारी की सी शान से बालों में जंगली पीला फूल लगाए बैठी थी. सब उसी को देख रहे थे.

इतराते हुए बड़ी अदा से नैना बोली, ‘‘जो मेरे लिए हीरे की अंगूठी लाएगा, मैं उसी से शादी करूंगी.’’

नैना की ऐसी विचित्र शर्त सुन कर सब की उम्मीदों पर जैसे पानी फिर गया. राहुल को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ.

धन्नो काकी यह तमाशा देख कर ठहरीं और हाथ नचाते हुए बोलीं, ‘‘घर में खाने को भूंजी भांग नहीं, उतरन के कपड़े, मांगे का सम्मान, मां घरघर जूठे बरतन धोए, बाप फेरी लगाए और दारू पीए और ये पहनेंगी हीरे की अंगूठी,’’ ऐसा कह कर वे आगे बढ़ गईं.

रंग में भंग हुआ. शायद नैना का प्रण टूट ही जाता, पर तभी राहुल के मुंह से निकला, ‘‘मैं पहनाऊंगा तुम्हें हीरे की अंगूठी,’’ और सब हैरानी से उसे देखते रह गए.

राहुल, जिस के घर में खाने के भी लाले थे, बीमार पिता की दवा के लिए पूरे पैसे नहीं थे, छत गिर रही थी, एक छोटी बहन ब्याहने को बैठी थी, उस राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी देने का वचन दे दिया. वह भी उसे जो उस का इंतजार करेगी भी या नहीं, यह वह नहीं जानता.

सचमुच राहुल के लिए हीरे की अंगूठी खरीदना और आकाश के तारे तोड़ना एक समान था. अभी तो वह पढ़ रहा है. बड़ा होनहार लड़का है वह. टीचर उसे बहुत प्यार करते हैं. उस की मदद के लिए तैयार रहते हैं.

राहुल पढ़लिख कर कुछ बनना चाहता है. राहुल की मां भी चाहती है कि वह पढ़लिख कर अपनी जिंदगी संवारे, इसीलिए वह हाड़तोड़ मेहनत कर राहुल को पढ़ा रही है.

राहुल की मां 35-36 साल की उम्र में ही 60 साल की दिखने लगी है. उसे लगता है कि उस का बेटा जग से निराला है. एक दिन वह पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनेगा और उस की सारी गरीबी दूर हो जाएगी, इसीलिए जब उसे पता चला कि राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी पहनाने का वचन दिया है तो उस के मन को गहरी ठेस लगी. थकी आंखों की चमक फीकी हो कर बुझ सी गई.

राहुल में ही तो उस की मां के प्राण बसते थे. अब तक मन में एक इसी आस के भरोसे कितनी तकलीफ सहती आई है कि राहुल बड़ा होगा तो उस के सारे कष्ट दूर देगा. वह भी जीएगी, हंसेगी, सिर उठा कर चलेगी. आज उस का यह सपना पानी के बुलबुले सा फूट गया.

अब क्या करे? राहुल तो अब ऐसी तलवार की धार पर, कांटों भरी राह पर चल पड़ा है जिस के आगे अंधेरे ही अंधेरे हैं.

मां ने राहुल को समझाने की भरसक कोशिश की और कहा, ‘‘अभी तू इन सब बातों में मत पड़ बेटा. बहुत छोटा है तू. पहले पढ़लिख कर कुछ बन जा, फिर यह सब करना.’’

‘‘मुझे रुपए चाहिए मां.’’

‘‘रुपए पेड़ों पर नहीं फलते. हम लोग तो पहले से ही सिर से पैर तक कर्ज में डूबे हैं.’’

‘‘मां, तुम नहीं समझोगी इन सब बातों को.’’

‘‘मुझे समझना भी नहीं है. मेरे पास बहुतेरे काम हैं. तू अभी…’’ मां की बात पूरी होने से पहले ही राहुल बिफर उठता. अब वह अपनी मां से, अपनों से दूर होता जा रहा था. नैना और हीरे की अंगूठी अब राहुल और उस के अपनों के बीच एक ऐसी दीवार के रूप में खड़ी हो गई थी जो हर पल ऊंची होती जा रही थी. उसे तो एक ही धुन सवार थी कि जल्दी से जल्दी ढेर सारा पैसा कमाना है ताकि हीरे की अंगूठी खरीद सके.

राहुल जबतब किसी सुनार की दुकान के बाहर खड़ा हो कर अंदर देखा करता था. एक दिन उसे अंदर झांकते देख दरबान ने डांट कर भगा दिया. नैना को पाने की ख्वाहिश में वह अपनी हैसियत वगैरह सब भूल गया था.

राहुल को यह भी नहीं समझ आया कि वह नैना को प्यार करता है और नैना हीरे की अंगूठी को प्यार करती है. उस ने तो बस अपनी कामना का उत्सव मनाना चाहा, समर्पण के बजाय अपनी इच्छा को पूरा करने का जरीया बनाना चाहा.

राहुल अपनी पढ़ाई छोड़ इस शहर से बहुत दूर जा रहा था. जाने से पहले नैना से विदा लेने आया वह. भुट्टा खाती, एक छोटी सी मोटी दीवार पर बैठी पैर हिलाती नैना को वह अपलक देखता रहा.

नैना से विदा लेते हुए राहुल की आंखें मानो कह रही थीं, ‘काश, तुम जान सकती, पढ़ सकतीं मेरा मन और देख सकतीं मेरे दिल के भीतर जिस में बस तुम ही तुम हो और तुम्हारे सिवा कोई नहीं और न होगा कभी.

‘मैं ने वादा किया है तुम से, मैं लौट कर आऊंगा और सारे वचन निभाऊंगा. लाऊंगा अपने साथ अंगूठी जो होगी हीरे से जड़ी होगी, जैसी तुम्हारी उजली हंसी है. तुम मेरा इंतजार करना नैना. कहीं और दिल न लगा लेना. मैं जल्दी आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना.’

राहुल अपने परिवार को छोड़ सब के सपने ताक पर रख हीरे की अंगूठी खरीदने के जुगाड़ में चल पड़ा. मां पुकारती रह गई. घर की जिम्मेदारियां गुहार लगाती रहीं. सुनहरा भविष्य पलकें बिछाए बैठा रह गया और राहुल सब को छोड़ कर दूसरी ओर मुड़ गया.

शहर आ कर राहुल ने 18-18 घंटे काम किया. ईंटगारा ढोना, अखबार बांटना, पुताई करना से ले कर न जाने कैसेकैसे काम किए. वहीं उसे प्रकाश मिला था, जो उसे गन्ना कटाई के लिए गांव ले गया. हाथों में छाले पड़ गए. गोरा रंग जल कर काला पड़ गया, पर रुपए हाथ में आते गए. हिम्मत बढ़ती गई.

अंधेरी स्याह रातों में कहीं कोने में गुड़ीमुड़ी सा पड़ा राहुल सोते समय भी सुबह का इंतजार करता रहता. मीलों दूर रहती नैना को देखने के लिए वह छटपटाता रहता.

समय का पहिया घूमता रहा. दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए. हीरे की अंगूठी की शर्त लोग भूल गए, पर राहुल नहीं भूला. बड़ी मुश्किल से, कड़ी मेहनत से आखिरकार उस ने पैसे जोड़ कर अंगूठी खरीद ही ली.

इस बीच कितनी बार ये पैसे निकालने की नौबत आई, मां बीमार पड़ी, बहन की शादी तय होतेहोते पैसे की कमी के चलते रुक गई, वह खुद भी बीमार पड़ा, घर के कोने की छत टपकने लगी, पर उस ने इन पैसों पर आंच न आने दी और आज बिना एक पल गंवाए वह हीरे की अंगूठी ले कर जब नैना के घर की ओर चला तो पैर जैसे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

राहुल शहर से लौट कर सब से पहले अपनी मां के गले कुछ ऐसे लिपटा मानो कह रहा हो, ‘मां, तेरा राहुल जीत गया. अब नैना को तुम्हारी बहू बनाने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि तेरा राहुल नैना की शर्त पूरी कर के ही लौटा है.’

मां ने उस का ध्यान तोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम ठीक हो न बेटा? कहां चले गए थे तुम इतने दिनों तक? क्या तुम्हें अपनी बीमार मातापिता और बहन की याद भी नहीं आई?’’ कहते हुए वह सिसकने लगी.

‘‘मां, अब रोनाधोना बंद करो. अब मैं आ गया हूं न. अपनी नैना को तेरी बहू बना कर लाने का समय आ गया. अब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा.’’

‘‘हां बेटा, अब काम ही क्या है… तेरे मातापिता अब बूढ़े हो चले हैं. जवान बहन घर में बैठी है. तुम जिस नैना के लिए हीरे की अंगूठी लाए हो न, उसे पहले ही कोई और हीरे की अंगूठी पहना कर ले जा चुका है.’’

‘‘झूठ न बोलो मां. हां, मेरी नैना को कोई नहीं ले जा सकता.’’

‘‘ले जा चुका है बेटा. तेरी नैना को हीरे की अंगूठी से प्यार था, तुझ से नहीं, जो उसे कोई और पहना कर ले गया. तुझे रूपवती लड़की चाहिए थी, गुणवती नहीं और उसे हीरे की अंगूठी चाहिए थी, हीरे जैसा लड़का नहीं.

‘‘उसे हीरे की अंगूठी तो मिल गई, पर हीरे की अंगूठी देने वाला पक्का शराबी है. तुम हो कि ऐसी लड़की के लिए घर, मातापिता और बहन सब छोड़ कर चल दिए.’’

‘‘बस मां, बस करो अब,’’ राहुल रोते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

राहुल को लगा कि वह भीड़ भरी राह पर सरपट दौड़ा चला जा रहा है. गाडि़यां सर्र से दाएंबाएं, आगेपीछे से गुजर रही हैं. उसे न कुछ दिखाई दे रहा है, न सुनाई दे रहा है. एकाएक किसी का धक्का लगने से वह गिरा. आधा फुटपाथ पर और आधा सड़क पर. हां, प्यार के पागलपन में कितनाकुछ गंवा दिया, यह समझ आते ही पछतावे से भरा राहुल उठ खड़ा हुआ.

सपना टूटते ही राहुल अपनेआप को सहजता की राह पर चला जा रहा था, अपनी बहन के लिए हीरे जैसे लड़के की तलाश में.                             द्य

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