कुंजू प्रधान को घर आया देख कर धीमा की खुशी का ठिकाना न रहा. धीमा की पत्नी रज्जो ने फौरन बक्से में से नई चादर निकाल कर चारपाई पर बिछा दी.कुंजू प्रधान पालथी मार कर चारपाई पर बैठ गया.
‘‘अरे धीमा, मैं तो तुझे एक खुशखबरी देने चला आया...’’
कुंजू प्रधान ने कहा, ‘‘तेरा सरकारी क्वार्टर निकल आया है, लेकिन उस के बदले में बड़े साहब को कुछ रकम देनी होगी.’’‘‘रकम... कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने पूछा.
‘‘अरे धीमा... बड़े साहब ने तो बहुत पैसा मांगा था, लेकिन मैं ने तुम्हारी गरीबी और अपना खास आदमी बता कर रकम में कटौती करा ली थी,’’
कुंजू प्रधान ने कहा.‘‘पर कितनी रकम देनी होगी?’’
धीमा ने दोबारा पूछा.‘‘यही कोई 5 हजार रुपए,’’
कुंजू प्रधान ने बताया.‘‘5 हजार रुपए...’’
धीमा ने हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा?’’
‘‘अरे भाई धीमा, तू मेरा खास आदमी है. मुझे प्रधान बनाने के लिए तू ने बहुत दौड़धूप की थी. मैं ने किसी दूसरे का नाम कटवा कर तेरा नाम लिस्ट में डलवा दिया था, ताकि तुझे सरकारी क्वार्टर मिल सके. आगे तेरी मरजी. फिर मत कहना कि कुंजू भाई ने क्वार्टर नहीं दिलाया,’’
कुंजू प्रधान ने कहा.‘‘लेकिन मैं इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगा?’’
धीमा ने अपनी बात रखी.‘‘यह गाय तेरी है...’’
सामने खड़ी गाय को देखते हुए कुंजू ने कहा, ‘‘क्या यह दूध देती है?’’
‘‘हां, कुंजू भाई, यह मेरी गाय है और दूध भी देती है.’’
‘‘अरे पगले, यह गाय मुझे दे दे. इसे मैं बड़े साहब की कोठी पर भेज दूंगा. बड़े साहब गायभैंस पालने के बहुत शौकीन हैं. तेरा काम भी हो जाएगा.
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