खेतीबारी में उलझा लल्लू खुद तो नहीं पढ़ पाया, पर अपने बेटों को खूब पढ़ाया. उस के 2 बड़े बेटे गुजरात में कमाई कर रहे थे.
वे वापस गांव आए, तो लल्लू ने गांव वालों को भोज का न्योता दिया. इस के बाद क्या हुआ?
लल्लू बेचारा गरीब ब्राह्मण था. गांव में सब से अलग. वह बचपन से ही पढ़ना चाहता था. शहर के लोगों को देखता, तो बोलता था, ‘‘वहां के लोग वीआईपी होते हैं.’’
पर गरीबी और मजबूरी से घर का खर्चा ही निकालना मुश्किल था, लल्लू पढ़ता कहां से. लेकिन पूरे गांव में वह नंबर एक की खेती करता था. पूरी जिंदगी खेतों में खप कर यही सोचता, ‘मैं नहीं पढ़ सका तो क्या हुआ, अपने बेटों को जरूर शहर पढ़ने भेजूंगा.’
समय बीता. लल्लू के 3 बेटे और 2 बेटियां हुईं. बेटियों की शादी कर समय से उन को ससुराल भेज अब कर्जा ले कर बेटों की पढ़ाई में लग गया.
अब रातदिन लल्लू के खेतों में ही कटते थे. पूरे गांव में सब से अव्वल खेती करता था. सब पूछने आते कि इतनी बढि़या खेती कैसे की है काका, हमें भी बताओ?
लल्लू सब को बड़े मन से बताता, जैसे किसी शहर का कृषि वैज्ञानिक हो.
लल्लू अब रातदिन मेहनत कर के अपने बेटों को सैट कर चुका था और उन की शादी कर के हर जिम्मेदारी से फारिग हो चुका था.
गांव के लोग आतेजाते बोलते, ‘काका, अब तुम्हारी मौज है. फारिग हो गए हो हर जिम्मेदारी से, अब तो आराम करने के दिन हैं...’
लल्लू भी हंस कर बोलता, ‘हां भाई, आखिर बहुत मेहनत की है आज का दिन देखने के लिए.’