कुछ दिनों के बाद देश में चुनावी माहौल गरमाने लगा था. सभी नेता अपनेअपने वोट बैंक को भुनाने में लगे हुए थे. एक शाम सुहानी को 2 बहुत ही खास लोगों का ध्यान रखने और मन बहलाने के लिए बुलाया गया. इन दोनों लोगों में से एक नेता मुसलिम पार्टी का कोई बड़ा नेता था और देश के पिछड़ेगरीब मुसलमानों का रहनुमा कहलाता था और दूसरा नेता किसी हिंदूवादी पार्टी से जुड़ा था. दोनों ही लोगों के चेहरे पर अधपकी दाढ़ी थी.
सुहानी उन दोनों को एकसाथ ऊपर के कमरे में ले गई और बोली, "आप दोनों तो अलगअलग समुदाय और अलगअलग राजनीतिक पार्टी से आते हैं और आप दोनों में बड़ा मतभेद भी है, तो फिर यहां आप दोनों एकसाथ कैसे?"
"अरे मैडम, वे सब मतभेद तो बाहर की भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हैं, असल में हम दोनों हर काम एकदूसरे की सलाह के बिना नहीं करते हैं," खीसे निपोरते हुए हिंदूवादी नेता बोला, जबकि मुसलिम नेता मुसकराते हुए अपने चश्मे को साफ कर रहा था.
"तो क्या आप दोनों यहां भी एकसाथ ही निबटेंगे या अलगअलग?" सुहानी ने कहा.
"हम तो आप को पहले ही बता चुके हैं कि हम दोनों अपने सारे काम एकसाथ ही करते है, इसलिए यहां भी… एकसाथ ही," बेशर्मी से मुसलिम नेता बोला.
दोनों विरोधी दल के नेता सुहानी के साथ सभी मतों पर सहमत हो रहे थे और उस के साथ रंगीली रात का मजा लूट रहे थे. उन दोनों का आपस में ऐसा प्यार देख कर सुहानी भी मुसकराए बिना न रह सकी.
ऐसे न जाने कितने ही लोग सुहानी की जिंदगी में आते गए जिन में से बहुत से लोगों से सुहानी को वक्तीतौर पर लगाव भी हो गया और जिन से उस ने बाद में भी मुलाकातें जारी रखीं.