‘‘कौन सी गाड़ी का टिकट कट रहा है साहब?’’ एक सुरीली आवाज ने राजेश का ध्यान खींचा. बगल में एक खूबसूरत लड़की को देख कर वह जैसे सबकुछ भूल चुका.
‘‘मैं आप से ही पूछ रही हूं साहब... कौन सी गाड़ी आ रही है?’’
‘‘जी... जी, ‘महामाया ऐक्सप्रैस’, डोंगरपुर से नागझिरी जाने वाली.’’
‘‘आप कौन सी क्लास का टिकट ले रहे हो? मेरा मतलब, मेरे लिए भी एक टिकट कटा दोगे तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी. कहां जा रहे हैं आप?’’
‘‘रौधा सिटी.’’
‘‘तब तो और भी अच्छी बात है. मुझे भी रौधा सिटी ही जाना है,’’ कह कर उस लड़की ने अपने बैग से नोटों की गड्डी निकाल कर 100-100 के 2 नोट राजेश के हाथ में थमा दिए.
‘‘माफ करना... मैं कब से टिकट लेने की कोशिश कर रही हूं, पर भीड़ इतनी ज्यादा है...’’ रुपए की गड्डी बैग में रखते हुए वह लड़की बोली.
‘‘कोई बात नहीं. आप आराम से सामने वाली बैंच पर बैठ जाइए.’’
जब ट्रेन आई तो राजेश अपने डब्बे में चादर बिछा कर एक सीट पर बैठ गया. वह जैसे उस लड़की के विचारों में खो गया. काश, वह लड़की उसी के पास आ कर बैठती...
‘‘अरे, आप...’’ थोड़ी ही देर बाद वह लड़की उसी डब्बे में आ कर राजेश से बोली.
‘‘आप को एतराज न हो, तो आप की बिछाई चादर पर...’’
‘‘जी बैठिए. जब हम और आप एक ही शहर जा रहे हैं, तो एतराज कैसा?’’ राजेश बोला.
वह लड़की राजेश की बिछाई चादर पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद वह अपने हैंडबैग की चेन खोलने लगी. कभी इस पौकेट की चेन तो कभी दूसरे पौकेट की चेन खोलती और बंद करती. वह बारबार बैग टटोल रही थी. वह बहुत परेशान लग रही थी.