कुल 51 फीसदी अंक. इंटरनैट पर 10वीं जमात के इम्तिहान का नतीजा देख कर बिजली खुशी से फूली नहीं समा रही थी. शायद वह इस से ज्यादा नंबर ला पाती, अगर जिंदगी ने उस के साथ नाइंसाफी नहीं की होती और उस के 3 साल बरबाद नहीं हुए होते.

बिजली की आंखों के सामने 3 साल पहले का सीन तैर गया. एक घटना ने उस के कीमती 3 साल चुरा लिए थे. पर दूसरी ओर वह खुश भी थी कि इन 3 सालों के अंदर ही वह इस दलदल से निकल पाई थी...

कुछ नक्सली आए थे बिजली के गांव में उस दिन. 20-25 नक्सली कंधे पर बंदूक टांगे उस के गांव से गुजर रहे थे. वह अपने घर के बरामदे से छिप कर उन्हें देख रही थी. उस के मन में डर तो था ही, पर कौतूहल भी था. वह नक्सलियों के बारे में तरहतरह के किस्से सुनती थी. वह उन की निगाहों से बचते हुए उन्हें देखना चाहती थी, पर एक नक्सली ने उसे देख लिया था.

‘‘ऐ लड़की, इधर सुन...’’ उस नक्सली ने बिजली को बुलाया था.

डरीसहमी बिजली उस नक्सली के सामने जा खड़ी हुई थी.

‘‘छातानगर का रास्ता जानती है?’’ उस नक्सली ने पूछा था.

‘‘हां...’’ बिजली ने सहम कर हामी भरी थी.

‘‘चलो, रास्ता दिखाओ...’’ उस नक्सली ने डपट कर बिजली को साथ चलने के लिए कहा था.

एक बार बिजली ने पलट कर अपने घर की ओर देखा था. पिता तो था नहीं उस का, उस के जन्म लेने के 2 साल के अंदर उस की मौत हो गई थी. मां दिख जाती तो उस के पास भाग जाती, पर वह भी दिखी नहीं. शायद किसी काम से कहीं गई हुई थी. वह नक्सलियों के साथ सरहद के पास आ गई.

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