दरवाजे की घंटी बजी. सुमन भी कभीकभी बौखला जाती है. दरवाजे की नहीं, फोन की घंटी थी. लपक कर रिसीवर उठाया.
‘‘हैलो,’’ सुमन का स्वर भर्रा गया.
‘‘हाय, मां, जन्मदिन मुबारक,’’ न्यूयार्क से बेटे मन्नू का फोन था.
सुमन की आंखों में आंसू आ गए और आवाज भी भीग गई, ‘‘बेटे, मां की याद आ गई?’’
‘‘क्यों मां?’’ मन्नू ने शिकायती स्वर में पूछा, ‘‘दूर होने से क्या तुम मां नहीं रहीं? अरे मां, मेरे जैसा बेटा तुम्हें कहां मिलेगा?’’
‘‘चल हट, झूठा कहीं का,’’ सुमन ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘शादी होने के बाद कोई बेटा मां का नहीं रहता.’’
‘‘मां,’’ मन्नू ने सुमन को सदा अच्छा लगने वाला संवाद दोहराया, ‘‘इसीलिए तो मैं ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है.’’
‘‘मूर्ख बनाने के लिए मां ही तो है न,’’ सुमन ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बजा है तेरे देश में?’’
‘‘समय पूछ कर क्या करोगी मां, यहां तो 24 घंटे बस काम का समय रहता है. अच्छा, पिताजी को प्रणाम कहना. और हां, मेरे लिए केक बचा कर रख लेना,’’ मन्नू जल्दीजल्दी बोल रहा था, ‘‘मां, एक बार फिर, तुम्हारा जन्मदिन हर साल आए और बस आता ही रहे,’’ कहते हुए मन्नू ने फोन बंद कर दिया था.
थोड़ी देर बाद फिर फोन बजा.
‘‘हैलो,’’ सुमन ने आशा से कहा.
‘‘मैडम, मैं हैनरीटा बोल रही हूं,’’ गुलशन की निजी सचिव ने कहा, ‘‘साहब को आने में बहुत देर हो जाएगी. आप इंतजार न करें.’’
‘‘क्यों?’’ सुमन लगभग चीख पड़ी.
‘‘जी, जरमनी से जो प्रतिनिधि आए हैं, उन के साथ रात्रिभोज है. पता नहीं कितनी देर लग जाए,’’ हैनरीटा ने अचानक चहक कर कहा, ‘‘क्षमा करें मैडम, आप को जन्मदिन की बधाई. मैं तो भूल ही गई थी.’’
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