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प्रबंधक ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कुछ भूल गए आप?’’

‘‘हां, जो काम सब से पहले करना था, वह सब से बाद में याद आया,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘मुझे एक बहुत अच्छा गुलदस्ता चाहिए और एक केक... जन्मदिन का.’’

‘‘किस का जन्मदिन है?’’ प्रबंधक ने पूछा.

गुलशन ने उदास हो कर कहा, ‘‘वैसे तो कल था, पर गलती सुधर जाए, कोशिश करूंगा.’’

‘‘फूलों की दुकान तो खुलवानी पड़ेगी,’’ प्रबंधक ने कहा, ‘‘इस समय तो कोई फूल लेता नहीं. वैसे किस का जन्मदिन है?’’

‘‘मेरी पत्नी का,’’ गुलशन के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘ओह, तब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा,’’ प्रबंधक ने कहा.

गुलशन इस होटल का पुराना ग्राहक था. साल में कई बार कंपनी का खानापीना यहां ही होता था. आधे घंटे बाद प्रबंधक बहुत बड़ा गुलदस्ता ले कर उपस्थित हुआ. सहायक के हाथ में केक था.

‘‘हमारी ओर से मैडम को भेंट,’’ प्रबंधक ने हंस कर कहा.

गुलशन का हाथ जेब में था. पर्स निकालता हुआ बोला, ‘‘नहीं, आप दाम ले लें.’’

‘‘शर्मिंदा न करें हम को,’’ प्रबंधक ने मुसकरा कर कहा.

घंटी की मधुर आवाज भी गहरी नींद में सोई सुमन को बड़ी कर्कश लगी. धीरेधीरे जैसे नींद की खुमारी की परतें उतरने लगीं तो उसे होश आने लगा. प्रेमलता तो बाहर पिछवाड़े में अपने कमरे में सो रही थी. वैसे भी उसे जाने के लिए कह रखा था. वह दरवाजा खोलने कहां से आएगी.

उसे अचानक हंसी भी आई, ‘‘लगता है, एक और गुलदस्ता आ गया.’’

दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘गुल्लर, तुम्हारा गुल्लर. देर आया, पर दुरुस्त आया,’’ गुलशन ने विनोद से कहा.

सुमन के चेहरे पर लकीरें तन गईं. हंसी लुप्त हो गई और क्रोध झलक आया. दरवाजा खोला तो गुलशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो. हर साल, हर साल, हर साल इसी तरह आता रहे. यह भेंट स्वीकार करिए.’’

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