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हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती, इसलिए आप को पूरी जिम्मेदारी निभानी है. मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते हैं अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं. अब खींचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा

सेना पर.’’

माजीसा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दूसरे हाथ से घोड़े की लगाम खींच घोड़े को एड़ लगा दी. युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगीं. खच्चखच्च कर सैनिक कटकट कर गिरने लगे. तोपों, बंदूकों की आवाजें गूजने लगीं. हरहर महादेव के नारों से यह भूमि गूंज उठी.

माजीसा भी बड़ी फुरती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उन की संख्या कम कर रही थीं कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया. भाला उन की पसलियां चीरता हुआ निकल गया और तभी माजीसा के हाथ से घोड़े की लगाम छूट गई और वे धम्म से नीचे गिर गईं.

 

सांझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठा कर वैद्यजी के शिविर में इलाज के लिए पहुंचाया. वैद्यजी घायल माजीसा की मरहमपट्टी करने ही लगे थे कि उन के सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए.

वैद्यजी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है. बात राणाजी तक पहुंची, ‘‘घायलों में एक औरत! पर कौन? कोई नहीं जानता. पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही.’’

सुन कर राणाजी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे. उन्होंने देखा कि औरत जिरह वस्त्र पहले खून से लथपथ पड़ी थी. पूछा, ‘‘कृपया बिना कुछ छिपाए सचसच बताएं. आप यदि दुश्मन खेमे से भी होंगी, तब भी मैं आप का अपनी बहन के समान आदर करूंगा.

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