‘‘खड़ेखड़े क्या सोच रहे हो, मिलाओ फोन दुर्गा और काली को. बता दो यह नामाकूल यहां है,’’ सुनीता की आंखों से अंगारे बरसने लगे.
जयप्रकाश ने सुनीता के पैर पकड़ लिए. ‘‘भाभीजी नहीं, उन्हें कुछ नहीं बताओ.’’
सुनीता ने पैर झटके, ‘‘पर क्यों? शादी करने से पहले क्या हम से सलाह ली थी? तेरी बरात में नाचे थे क्या?’’
देवराज ने सुनीता को शांत किया, ‘‘छोड़ नीते, इस की हालात ठीक नहीं है. ब्लडप्रैशर भी ज्यादा लग रहा है. इस को आराम करने दे. कुछ सोचते हैं.
‘‘अच्छा जय, हम दूसरे कमरे में जा रहे हैं, तू आराम से सो जा. फिक्र न कर, जब तक तू यहां है, दुर्गा और काली को फोन नहीं करेंगे.’’
जयप्रकाश ने 3 दिनों से आराम नहीं किया था, वह थोड़ी देर में सो गया.
दूसरे कमरे में देवराज और सुनीता जयप्रकाश के बारे में बात कर रहे थे और उन्होंने एक फैसला किया कि जब तक जयप्रकाश की तबीयत ठीक नहीं होती, वे दुर्गा और काली से कोई बात नहीं करेंगे.
बात तकरीबन 10 साल पहले की है. लंबा, गोरा, जवान गबरू जयप्रकाश, जिस को देख कर कोई भी लड़की गश खा जाए, ग्रेजुएशन के फौरन बाद सरकारी नौकरी लग गई परिवहन विभाग में, जहां रिश्वत के बिना कोई काम होता ही नहीं. 2 साल में ही मोटी रकम जमा कर ली.
एक तो गबरू जवान, ऊपर से मोटी रिश्वत वाली पक्की नौकरी. शादी के लिए खूबसूरत लड़कियों के घर वाले आगेपीछे घूमने लगे. खूबसूरत दुर्गा के साथ शादी करे. खूबसूरत जोड़े को देख कर हर कोई गश खाता था. शायद दुनिया की नजर लगी. दोनों के औलाद नहीं हुई. बड़े से बड़ा कोई भी डाक्टर नहीं?छोड़ा. सारे इलाज करवाए, पर औलाद का सुख नहीं पा सके.
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