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तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

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