उस दिन सारे महल्ले वालों ने रश्मि का इतना शानदार स्वागत किया कि जिस का वर्णन शब्दों में करने के लिए शब्दकोष के सारे अच्छे शब्द भी शायद कम पड़ें. उस दिन का नजारा मेरे लिए एक कभी न भूलने वाला अनुभव बन गया. मुझे लगा मैं ने अपने समय का सब से बेहतरीन उपयोग उस दिन किया.
लेकिन रश्मि की यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. घर आने के 10 दिन बाद ही महेंद्र को अचानक पैरों की तकलीफ शुरू हो गई. वह दिनरात पीड़ा से कराहता रहता. उस का बदन बुखार से तपता रहता और दर्द असहनीय होने पर वह तड़प उठता. रश्मि तब बिना समय गंवाए महेंद्र को के.ई.एम. ले गई जहां उसे फिर भरती किया गया और शुरू हुआ एक नया सिलसिला...ब्लड कल्चर, हड्डियों का एक्सरे, एम.आर.आई., सोनोग्राफी और न जाने क्याक्या.
एक्सरे और एम.आर.आई. की रिपोर्ट से पता चला कि महेंद्र को बोन टी.बी. है. उसे ठीक करने के लिए ढेरों रुपए और एक लंबे समय की जरूरत है. पिछले 8 महीने से यही भागदौड़ चली आ रही है.
इस दौरान रश्मि के हिस्से में बेहिसाब तकलीफें आईं तो मैं ने उसे समझाया कि देखो रश्मि, तुम महेंद्र के लिए जितना कर सकती थीं, किया, अब तुम इस मामले से बाहर निकल जाओ, प्लीज...
‘‘दीदी, प्लीज,’’ वह लगभग चीख उठी, ‘‘जब परिवार का एक सदस्य गंभीर रूप से बीमार होता है तब उस के साथसाथ घर के दूसरे सदस्यों का जीवन किस हद तक बिखर जाता है इस का एहसास आप को है? महेंद्र की बड़ी बहन आरती पढ़ना चाहती है लेकिन उस ने पढ़ाई छोड़ कर अपनी किशोरावस्था को गृहस्थी की आग में झोंक दिया. सब से छोटी बहन नीलम की आंखें आप ने नहीं देखीं न? लेकिन मैं ने उस की आंखों में बसे सतरंगी सपनों को राख में बदलते देखा है. तीनों बहनें हर पल अपनी जिंदगी के साथ समझौता करती हुई जीए जा रही हैं. उन का क्या भविष्य?