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लेखक- मीनू त्रिपाठी

वह जल्दी घर पहुंच कर आकाश को सरप्राइज देना चाहती थी. पर, खुद सरप्राइज्ड हो गई जब बड़ी देर तक घंटी बजाने के बाद आकाश ने दरवाजा खोला. शाम के साढ़े 6 और 7 बजे के बीच आने वाली पत्नी को 2 बजे दरवाजे पर देख कर उस के बोल नहीं फूटे.

रेवती घर के भीतर गई, तो बैडरूम में अपने ही बिस्तर पर अपनी कालोनी की एक औरत को देख गुस्से से पागल हो गई. आकाश और उस औरत के अस्तव्यस्त कपड़े और हुलिए को देखने के बाद किसी सफाई की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी.

आकाश का यह रूप और राज जान कर उस का वह अस्तित्व हिल गया, जिसे सुरक्षित रखने के लिए आकाश उसे नौकरी करने के लिए प्रेरित करता था. नौकरी की प्रेरणा के पीछे इतना घिनौना उद्देश्य जान कर वह विक्षिप्त सी हो गई. जिस आकाश को देख कर वह जीती थी, उस आकाश ने उसे जीतेजी मार दिया था. नौकरी करने वह जाती थी और आजादी आकाश को मिलती थी ऐयाशियां करने की.

रेवती को फूटफूट कर रोते देख सौम्या ने उस के कंधे को पकड़ कर जोर से हिला कर पूछा, ‘‘तू ने इतना घिनौना सच जानने के बाद भी उस के साथ आगे भी रहने का निर्णय क्यों लिया?’’

‘‘मैं ने उस का चुनाव नहीं किया सौम्या, मैं ने उस पदप्रतिष्ठा और बच्चों की शांति व उन के भविष्य का चुनाव किया है, जिस को कमाने में मेरी पूरी उम्र लग गई. दुनिया के सामने वे मेरे आदर्श पति थे और आज भी हैं. जबकि हम एक घर में दो अजनबी हैं. हम दोनों एकदूसरे का इस्तेमाल सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते ही करते हैं.’’

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