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Writer- Kahkashan Siddiqui

समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

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औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

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