दिल्ली से बैंगलुरु का सफर लंबा तो था ही, लेकिन जयंत की बेसब्री भी हद पार कर रही थी. 3 साल बाद खुशबू से मिलने का वक्त जो नजदीक आ रहा था. मुहब्बत में अगर कामयाबी मिल जाए तो इनसान को दुनिया जीत लेने का अहसास होने लगता है.

ट्रेन सरपट भाग रही थी लेकिन जयंत को उस की रफ्तार बैलगाड़ी सी धीमी लग रही थी. रात के 9 बज रहे थे. उस ने एक पत्रिका निकाल कर अपना ध्यान उस में बांटना चाहा लेकिन बेजान काले हर्फ और कागज खुशबू की कल्पना की क्या बराबरी करते?

खुशबू तो ऐसा ख्वाब थी, जिसे पूरा करने में जयंत ने खुद को  झोंक दिया था. उस की हर शर्त, हर हिदायत को आज उस ने पूरा कर दिया था. अब फैसला खुशबू का था.

जयंत ने मोबाइल फोन निकाला. खुशबू का नंबर डायल किया लेकिन फिर अचानक फोन काट दिया. उसे याद आया कि खुशबू ने यही तो कहा था, ‘जब सच में कुछ बन जाओ तब मुहब्बत को पाने की बात करना. उस से पहले नहीं. मैं तब तक तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

मोबाइल फोन वापस जेब के हवाले कर जयंत अपनी बर्थ पर लेट गया. सुख के इन लमहों को वह खुशबू की यादों में जीना चाहता था.

5 साल पहले जब जयंत दिल्ली आया था तो वह कुछ बनने के सपने साथ लाया था लेकिन दिल्ली की फिजाओं में उसे खुशबू क्या मिली, जिंदगी की दशा और दिशा ही बदल गई.

जयंत ने मुखर्जी नगर, दिल्ली के एक नामी इंस्टीट्यूट में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए दाखिला लिया तो वहां पढ़ाने वाली मैडम खुशबू का जादू पहली नजर में ही प्यार में बदल गया.

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