‘पता नहीं गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है. माना कि गरमी से नजात पाने के लिए एसी का चलाया जाना बहुत जरूरी है, पर ऐसी भी क्या जरूरत, जो बेवजह भी इसे इस्तेमाल किया जाए,’ बस की खिड़की से बाहर देखते हुए दिव्या सोच रही थी.
मन नहीं माना तो दिव्या ने खिड़की को जरा सा खिसका भर दिया. एक हवा का तीखा कतरा आया और उस की जुल्फों से अठखेलियां करता हुआ गुजर गया. कोई टोक न दे, इसलिए दिव्या ने धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया.
दिव्या आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी, जहां उसे कुछ दिन रुकना था, इसलिए उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.
‘चर्रचर्र…’ की आवाज के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिस की चैकिंग थी.
पुलिस की सघन चैकिंग के बाद बस आगे बढ़ी. यहां से अब भी आधा सफर बाकी था.
‘अब तो लगता है कि मुझे पहुंचते हुए काफी रात हो जाएगी. और अगर ऐसा हुआ तो बसस्टैंड से होटल तक तो मुझे जाने में बड़ी परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.
और वाकई जो दिव्या सोच रही थी, वैसा ही हुआ. बस को शहर पहुंचे हुए काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी.
कई आटोरिकशे वाले खड़े थे, पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से ही मना कर दिया, तो कुछ सो रहे थे. कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.
तभी दिव्या की नजर कोने में खड़े एक आटोरिकशा पर पड़ी. वह लपक कर वहां गई तो देखा कि उस का ड्राइवर उस के अंदर बैठा हुआ सो रहा है.
‘‘ऐ आटो वाले… खाली हो… होटल रीगल तक चलोगे क्या?’’ दिव्या की आवाज पता नहीं क्यों तेज हो गई थी.
दिव्या की आवाज सुन कर आटोरिकशा वाला चौंक कर उठ गया और इधरउधर देखने लगा.
‘‘ज… जी… वह आखिरी बस आ गई क्या… मैं जरा सो गया था… हां, बताइए मैडम… कहां जाना है आप को?’’ आटोरिकशा वाले ने पूछा.
‘‘होटल रीगल जाना है मुझे,’’ दिव्या झुंझला उठी थी.
‘‘हां जी… अंदर बैठिए…’’ कह
कर आटोरिकशा वाले ने आटोरिकशा स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.
‘‘होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?’’ दिव्या ने पूछा.
‘‘मैडम, कुछ नहीं तो कम से कम 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा… बात ऐसी है न मैडम कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत. हम अभी आप को पहुंचाए देते हैं,’’ आटोरिकशा वाले ने कहा.
आटोरिकशा वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था उस ने, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था.
अचानक से आटोरिकशा के अंदर रोशनी सी भर गई. आटो वाले लड़के और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. ये 4 लड़के थे, जो अपनी बाइक की हैडलाइट को जानबूझ कर आटोरिकशा के अंदर तक पहुंचा रहे थे.
अचानक से उस आटोरिकशा वाले ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी, जितनी वह बढ़ा सकता था और मुख्य सड़क से हट कर किसी और सड़क पर आटोरिकशा चलाने लगा.
‘‘क्या हुआ… तुम इतनी तेज क्यों चला रहे हो… और आटोरिकशा को किस तरफ ले जा रहे हो… बात क्या है आखिर?’’ दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.
‘‘जी… कुछ नहीं मैडम… आप डरिए नहीं… दरअसल, इस शहर में
कुछ भेडि़ए इनसानी भेष में रोज रात
को लड़कियों का मांस नोंचने के लिए निकल पड़ते हैं. और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है… पर, आप डरिए नहीं. मैं इन के इरादे कामयाब नहीं होने दूंगा,’’ आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए आटोरिकशा वाला बोल रहा था.
पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी और वे आटोरिकशा के बराबर में आने लगे.
आटोरिकशा वाले ने अचानक आटो को एक दिशा में लहरा दिया और आटोरिकशा के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और उस की बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई और वह सड़क के किनारे लहराता हुआ गिर गया.
अपने साथी को इस तरह गिरा देख कर उस का दूसरा साथी गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर पहुंच गया, वैसे ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज छाते का एक जोरदार वार उस के हैलमैट पर किया. दूसरा सवार भी चारों खाने चित हो गया.
अपने 2 साथियों को इस तरह से चोटिल देख कर बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट सा गया और उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.
उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में आटोरिकशा मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और आटोरिकशा वाला आटोरिकशा भगाता जा रहा था.
आटोरिकशा चला जा रहा था कि तभी अचानक आटोरिकशा से कुछ खटाक की आवाज आई और आटोरिकशा जहां का तहां खड़ा हो गया, जितना उस आटोरिकशा ड्राइवर को तकनीक के बारे में पता था, वह सबकुछ उस ने कर के देख लिया पर कुछ न हो सका.
‘‘मैडम, अफसोस की बात है कि हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यहींकहीं काटनी होगी.’’
‘‘क्या मतलब… यहां कहां… और कैसे?’’
‘‘अब क्या करें मैडम मजबूरी है,’’ आटोरिकशा वाला बोला.
‘‘वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है… वहां चलते हैं. जरूर वहां हमें सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी,’’ अपनी उंगली दिखाते हुए आटोरिकशा वाले ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेजी से चल पड़ा.
और उस का अंदाजा सही था. ये एक नई बन रही बहुमंजिला इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मजदूर सो रहे थे और बाकी की इमारत पूरी तरह से खाली थी.
दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.
यह सब दिव्या को बड़ा अजीब सा लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?
‘‘इधर आ जाइए मैडम… हवा अच्छी आ रही?है,’’ उस नौजवान ने बालकनी में आवाज देते हुए कहा.
‘‘वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?’’ अचानक ही दिव्या ने पूछा.
‘‘जी… मेरा नाम आर्यन है,’’ नौजवान ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया.
‘‘वाह, क्या नाम है तुम्हारा… वैरी गुड,’’ दिव्या ने पर्स में रखे हुए बिसकुट आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.
‘‘जी मैडम… बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थीं और जब फिल्म ‘मोहब्बतें’ रिलीज हुई न, तब मैं उन के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेंगी.’’
आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए नहीं रह सकी दिव्या.
‘‘दिखने में तो खूबसूरत लगते
हो और पढ़ेलिखे भी… फिर यह आटोरिकशा के अलावा कोई और नौकरी क्यों नहीं करते?’’ दिव्या ने पूछा.
‘‘मैडम, मैं ने एमए किया है, वह भी इंगलिश में… पर, आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बड़ीबड़ी डिगरी हो या फिर किसी की सिफारिश… और अपने पास दोनों ही नहीं थे, मरता क्या न करता, इसलिए आटोरिकशा ही चलाने लगा.’’
‘‘हम्म, मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ… किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है… या फिर,’’ दिव्या ने पूछा.
‘‘हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था… पर अफसोस, लड़की ने धोखा दे दिया…
‘‘एक दिन की बात है, जब मैं आटोरिकशा ले कर घर वापस जा रहा था तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है और उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ चारों तरफ खड़ी मोबाइल फोन से वीडियो बना रही है. कोई भी उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा है.
‘‘उस लड़के के साथ में एक बदहवास सी लड़की भी थी, मुझे उन दोनों पर दया आई और इनसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया, वहां पर उस लड़के को जब खून की जरूरत पड़ी तो उस लड़की ने फिर मुझ से मदद मांगी और मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है.
‘‘मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे खूब शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता और अपना मोबाइल नंबर भी दिया और बदले में मेरा नंबर भी लिया, और फिर रोज सुबह ही उस लड़की का ह्वाट्सएप पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती और मुझ से पूछती कि मैं उसे कैसी लगती हूं.
‘‘एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर बुलाया. मैं भी उस से मिलने के लिए उतावला था, इसलिए उस के घर खूब तैयार हो कर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था.
‘‘जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया, उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थीं, पर उस दिन वे कहीं गई हुई थीं.
‘‘जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है, तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ कहीं गया है.
‘‘मैं ने मौका देख उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला, अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था.
नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया, तब उस ने मेरे ईसाई होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया. वह निराश हो कर कहने लगी कि मुझे भूल जाओ, मैं अब शादी तुम से नहीं कर सकती, क्योंकि मेरे मम्मीपापा कट्टर हिंदू हैं और वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी कभी नहीं करेंगे…
‘‘हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था, पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया…
‘‘बस मैडम, मेरी तो पहली और आखिरी कहानी यही थी,’’ इतना कह कर आर्यन चुप हो गया.
‘‘काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की… पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी… इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,’’ दिव्या ने हंसते हुए कहा.
‘‘हां जी, हो सकता है, पर आप ने अपने बारे में कुछ नहीं बताया… मसलन, आप के मांबाप…’’ आर्यन भी दिव्या की प्रेम कथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप के बारे में ही पूछ लिया.
‘‘मेरे पापा एक फार्मा कंपनी में काम करते थे, सेल्स का काम था तो अकसर ही घर के बाहर रहते… घर में सबकुछ था… ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं और जब घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…’’ कहतेकहते हुए चुप हो गई दिव्या.
‘‘जी… और आप की मां?’’
‘‘मां… अब उस के बारे में क्या बताऊं… उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था, रुपए से, पैसे से… पर, कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज एक नया मर्द चाहिए होता है न… कुछ ऐसी ही थी मेरी मां… वे कहीं भी जाती, तो अपने लिए मुरगा तलाश ही लेतीं और उसे अपना फोन नंबर देतीं और जब वह आदमी घर तक आ जाता, तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देतीं और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनातीं.
‘‘उन की ये हरकतें पापा को पता चलीं तो उन्होंने तुरंत ही उन्हें तलाक दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया.
‘‘तलाक के बाद जहां मां को संभल जाना चाहिए था, वहां वे और भी आजाद हो गईं… अब तो आदमी आते और दिनदिन भर घर पर ही पड़े रहते, बल्कि अब तो आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जी भर कर सैक्स का मजा लेती थीं.
‘‘मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर खुदकुशी करने की कोशिश की… पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.
‘‘मुझे भी किसी का सहारा चाहिए था, मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई.
‘‘उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना लाजिमी ही था, प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था, पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का किरदार आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं करना चाहते, जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से संबंध रखती हो…’’ इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.
दोनों लोग चुप थे, रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था, हवा आ कर अब भी कभीकभी दिव्या की जुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.
‘‘पर मैडम… मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को… पर, आप की कहानी में तो सिर्फ दर्द के अलावा कुछ भी नहीं है,’’ आर्यन ने कहा.
दिव्या का कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी वह छिपा न सकी.
‘‘तुम रो रही हो?’’ आर्यन ने पूछा.
बिना कोई जवाब दिए ही वह आर्यन के सीने से लिपट गई.
शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं मिला था उसे, जिस पर वह अपना सिर रख सके…
और आर्यन ने भी अपनी मजबूत बांहों का घेरा दिव्या के इर्दगिर्द डाल दिया था. अब वह खामोश बिल्डिंग उन के मिलन की गवाह बन रही थी.
सूरज की पहली किरण फूटी, पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.
तभी दूर से एक दूध की गाड़ी आती दिखाई दी. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया. दोनों ने दौड़ कर उस गाड़ी में लिफ्ट मांगी.
‘‘हम कहां जा रहे हैं… और मेरा आटोरिकशा तो वहीं रह गया मैडम?’’ आर्यन ने पूछा.
‘‘अगर तुम्हें कोई दूसरा काम मिले तो करोगे?’’ दिव्या ने आर्यन से पूछा.
‘‘हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.’’
‘‘पर, हो सकता है कि तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?’’
‘‘हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.’’
‘‘मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,’’ दिव्या ने कहा. बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.
शहर आ गया था. वे दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.
रिसैप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, ‘‘मैं ने एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में थोड़ी देर हो गई… पर ,अब मुझे एक सिंगल नहीं, बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.’’
‘‘जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?’’ मैनेजर ने पूछा.
‘‘मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था, पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,’’ दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.