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यह हो क्या गया है सुधीर का जो चेहरा सुबह की ओस की तरह दमकता था अब वह सूखे नारियल सा मुरझाया रहने लगा है और फौआरों सी उछल कर आसमान छूने वाली उन की वह हंसी भी अब गायब सी हो गई है.

कहां पहले उन के मुंह से एकएक शब्द मईजून की तपती धूप की तरह निकलते थे और अब बर्फ की तरह ठंडे शब्द बोलते हैं. बस, इसी तरह सुधि सुबह से शाम तक अपने पति सुधीर के बारे में सोचती रहती.

आज ही देखो, कितने प्यार से मेरे गालों को थपथपाते हुए बोले, ‘‘सुधि, अब बच्चे बडे़ हो गए हैं, तुम्हारा घर में मन नहीं लगता होगा तो सर्विस ज्वाइन कर लो.’’

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पहले तो कभी इस तरह नहीं बोले. बड़े आश्चर्य से वह सुधीर की ओर देखती रही और चक्रवात में फंसे हुए तिनके की तरह सोचती रही.

उसे लगा कि जैसे समुद्र के किनारे पर बड़ीबड़ी चट्टानों में ठहरा हुआ पानी सूरज के प्रकाश से चमक उठता है उसी तरह से सुधीर की आंखों में भी आंसू की बूंदें चमक रही थीं.

फिर सुधि ने हलकी आवाज में कहा, ‘‘अरे, आप को आज हो क्या गया है जो सर्विस करने के लिए कह रहे हो, पहले तो आप ने क्रोध में आ कर मेरी लगी हुई नौकरी छुड़वा दी कि आप जैसे इंजीनियर की पत्नी के नौकरी करने से आप की बदनामी होती है और आज आप फिर नौकरी करने के लिए कह रहे हैं.’’

मुंह का कौर खत्म कर के सुधीर बोले, ‘‘डार्लिंग, उस समय बच्चे बहुत छोटे थे, उन को तुम्हारी बहुत जरूरत थी.  अब दोनों बच्चे बाहर हैं, इंजीनियरिंग पढ़ रहे हैं, तुम बोर होती हो, तभी मैं ने सर्विस के लिए कहा है.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं आप. अब मुझे किसी भी अच्छे स्कूल में नौकरी नहीं मिलेगी और छोटेमोटे स्कूल में मैं कभी भी नौकरी नहीं करूंगी,’’ कहते हुए सुधि खाना खा कर हाथ धोने लगी.

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो करो…मैं तो नौकरी के लिए इसलिए भी कह रहा था क्योंकि अब मैं टूर पर बहुत रहता हूं. सुनो, अगर चाहो तो साहित्य सृजन शुरू कर दो.’’

बेझिझक, बेबाक हो कर सुधि ने उत्तर दिया, ‘‘वह तो मैं कर ही रही हूं और पत्रपत्रिकाओं में छप भी रहा है,’’ कहते हुए सुधि की निगाहें झुकी हुई थीं, जैसे उस ने कोई चोरी की है.

सुधीर के प्यार भरे संबोधन को सुन कर सुधि को लगा जैसे रात की गूंगी खामोशी को सुबह की आवाज मिल गई. उस के मन के अंधेरों में हजारों दीपक जल उठे, लेकिन उस प्रकाश में भी सुधि अतीत का इतिहास पढ़ने लगी.

कैसे भूल सकती है वह जवानी की वे रातें जब वह चांदनी के हिंडोले को टकटकी लगाए देखती थी, रोती थी जारजार. एकएक शब्द सुधीर का जलते हुए अंगारे सा उसे बाहर से अंदर तक जला देता था. ‘क्या तुम्हें खाने का भी ढंग नहीं आता, जो चावल हाथ से खाती हो.’

कभी झल्ला कर कहते, ‘ओह, हद हो गई है…जब भी कहीं जाती हो गंवार औरतों की तरह चटक रंग की साड़ी पहन लेती हो. किसी दिन बाजार चलो, मैं अच्छी साडि़यां खरीदवा दूंगा.’

एक दिन तो सुधीर ने सीमा ही लांघ दी, ‘मैं जब भी किसी मित्र को घर बुलाता हूं, एक तो खाना बेढंगा बनाती हो फिर कपडे़  भी वही अपने मायके के चटकीले, भड़कीले पहन लेती हो. मिसेज मिश्रा, मिसेज वर्मा को देखो, सब कितने स्टाइलिश कपडे़ पहनती हैं…तुम्हारे ऐसे रंगढंग देख कर तो मन करता है कि किसी मित्र को कभी घर न बुलाऊं.’

उन बातों से वह आज तक जली हुई है, लेकिन अब सुधीर की आदतें कैसे बदल गई हैं…अब तो चाशनी में पगे शब्दों को इस्तेमाल करते हैं. मेरी हर बात का बहुत खयाल रखते हैं. इधर 1 महीने के अंदर अपनी पसंद के ढेरों कपड़े और जेवर दिलवाए हैं, हालांकि खुद नहीं खाते हैं, लेकिन मुझे होटलों में खिलाते हैं.

और तो और, मेरी तबीयत खराब होने पर अपने दोस्त को डिनर भी होटल में दिया  था. लगता है आर्ट आफ लिविंग की क्लासेज अटैंड कर ली हैं. ताज्जुब है कि बेटों के और मेरे बैंक में अलग खाते खुलवा कर फिक्स्ड डिपाजिट में रुपए जमा कर दिए हैं. कहीं कुछ अशुभ तो नहीं घटने वाला है…कहीं इन्हें कुछ हो तो नहीं गया है.

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सोचते हुए सुधि सुधीर के पास जा कर उन्हें प्यार करने लगी. फिर दिमाग ने कहा कि 7 दिन बाद टूर से आए हैं, सोने दो.

हमेशा विचारों के तानेबाने में ऐसे ही उस रात घड़ी ने 3 बजा दिए और आंखें बारबार सुधीर के चेहरे को निहार रही थीं. एकाएक उसे लगा सुधीर के चेहरे की रौनक उड़नछू हो गई है, आंखों के नीचे स्याह गड्ढे भी पड़ गए हैं.

और एक ही झटके में उन के स्वभाव में कठोरता का स्थान कोमलता ने और कटुता का स्थान विनम्रता ने ले लिया है.

जो पति उसे कोयले का ढेर लगता था, अब ढेर में पड़ा हुआ हीरा लगने लगा है. शादी के बाद 20 सालों तक सुधि के दुख के अंगारों से दिल की शमा पिघल- पिघल कर आंखों से गिरती रही है, टप… टप…

एक खौफ, एक कर्कशता, एक अपमान, सुधीर के साथ से उसे एकएक बूंद कड़वे नीम के रस सा पीने को मिलता रहा है.

वह पीती भी रही है, क्योंकि वह एक अच्छी मां और आदर्श पत्नी के रूप में जीती रही है. पढ़ीलिखी है, एम.ए., बी.एड. तक. पिताजी भी प्रोफेसर थे और मां इंटरमीडिएट कालिज में टीचर थीं.

लेकिन शादी बेमेल हुई थी. सुधीर के पिताजी चीफ इंजीनियर थे और सुधीर स्वयं एक इंजीनियर. दोनों परिवारों के स्टैंडर्ड आफ लिविंग में बहुत असमानता थी. किस्मत का खेल कि अखबार के विज्ञापन से रिश्ता तय होना था, हुआ. सुधि ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि सबकुछ होते हुए भी सुधीर के क्रूर व्यवहार और अहंकारवश उस के पांव के नीचे हमेशा तपती जमीन रहेगी और सिर पर निष्ठुर आफताब.

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