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मैं उसे कमरे में छोड़ कर सलीम को हवालत के एक खाली कमरे में ले गया और उस से पूछा, ‘‘तेरे यार ने सब कुछ बक दिया है. तू तो गुरु आदमी है, तूने यह क्या गलती की, इतने कच्चे आदमी के साथ जा कर उस का काम तमाम कर दिया.’’

पलभर रुक कर मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं. अगर तुम ने सच नहीं बोला तो थाने में तुम्हारा पूरा रिकौर्ड मौजूद है. मैं उसे अदालत में पेश कर दूंगा और तुम सीधे फांसी चढ़ जाओगे.’’

उस ने कहा, ‘‘मुझे सरकारी गवाह बना लो.’’

‘‘अरे तुम बयान तो दो, यह मेरे ऊपर छोड़ दो. देखो मैं क्या करता हूं.’’

मैं ने उस से कई तरह की बातें कर के उस का बयान ले लिया. उसे संक्षेप में सुनाता हूं.

आबिद और सलीम की दोस्ती थी. सलीम पक्का बदमाश था और आबिद तो बदमाशी में मुंह मारता ही था. उसे घर से पैसे मिल जाया करते थे. वह घर में पैसों की चोरी भी कर लिया करता था. सलीम और दूसरे दोस्तों ने आबिद को जुए का चस्का भी लगा दिया था.

आबिद की बहन ससुराल से आ कर घर बैठ गई थी. उस की सास उस के साथ जो सलूक करती थी, वह घर आ कर सुनाती थी. सुन कर आबिद को गुस्सा आता था. उस ने सलीम से कहा कि वह बदला लेना चाहता है. सलीम उसे रोकता था. कुछ दिन बाद आबिद की बहन घर से गायब हो गई. घर वालों ने इस बात को छिपा कर रखा. लेकिन धीरेधीरे सब को पता लग गया.

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