लेखक- आभा सिंह

शीली के लिए विभव से मिलना अचानक ही था. हां, वह जरूर उस के आने की राह तकता पार्क के किनारे खड़ा इंतजार कर रहा था. भूल गए अतीत को इस तरह इंतजार करता देख शीली को कितनी तकलीफ हुई थी.

स्कूटर रोक लेने का इशारा करता विभव उस के नजदीक ही चला आया. लुटेपिटे व्यक्तित्व और खंडित मनोशक्ति वाला विभव दीनहीन याचक बना खड़ा था. उस ने इस पुरुष से तो प्रेम नहीं किया था. विभव के कहे कुछ शब्दों को सुन कर ही उसे मचली आने लगी. नजरें नीची कर स्कूटर स्टार्ट कर वह चुपचाप घर चली आई. विभव पुकारता ही रह गया...

घर पहुंच कर शीली को लगा कि अब खुल कर सांस आई है. मुंहहाथ धो कर ताजादम हुई.

चाय का घूंट भरते ही दिन भर की थकान पल भर में गायब हो गई. थोड़ा सहज होते ही फिर उस के मन में उलझाने वाले सवाल उठने लगे कि विभव अब क्यों आया? क्यों पहले की तरह वह पार्क के किनारे खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. क्या वह उसे अपने से कमतर आंक रहा था? उस ने क्या सोचा कि वह 8 वर्ष के अतीत को भूल कर उसे फिर अपना लेगी... दोस्ती कर लेगी...पर क्यों? माना कि तब मेरे मन के सारे कोमल भाव उसी के इर्दगिर्द उमड़घुमड़ कर स्नेह की वर्षा करते थे तो क्या अब भी विभव उसे उसी मोड़ पर खड़े देखना चाहता है जहां उसे छोड़ गया था... कैसा दोटूक जवाब दिया था जब शीली ने स्नेह में भर, उस से विवाह का प्रस्ताव रखा था. एक लिजलिजा सा कारण दे कर सारे संबंध तोड़ गया था.

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