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‘‘आप... आप क्यों ?ाड़ू लगा रहे हैं...’’ पाखी बोल ही रही थी कि अरुण बोल पड़ा, ‘‘अरे, वह अचानक लौकडाउन हो गया न, इसलिए कोई कामवाली काम करने नहीं आएगी. अब तो अपना हाथ जगन्नाथ,’’ इतना कहने के साथ ही अरुण के चेहरे पर सहज मुसकान आ गई. कितना बदल गया है इन सालों में सबकुछ.

जिस अरुण को औफिस के कामों, मम्मीजी को पूजापाठ और पापाजी को अखबार से फुरसत नहीं मिलती थी, आज वक्त ने सबकुछ सिखा दिया था. पाखी के लिए समय काटना मुश्किल हो रहा था.

मम्मीजी ने शुरूशुरू में पाखी के चौके में घुसने पर नाकभौं सिकोड़ी. पर अरुण के सख्त चेहरे और हालात के आगे वे ढीली पड़ गईं.

शुरूशुरू में रिश्तेदारों के फोन आते रहते और घर बैठेबैठे आग में घी डालने का काम करते रहते, पर जैसेजैसे लौकडाउन की समयसीमा खिसकती रही, उन के फोन आने बंद हो गए.

पाखी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली

पाखी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह इस घर से कभी गई भी थी. पापा की नीबू वाली चाय, मम्मीजी की बिना चीनी वाली चाय और अरुण की चीनी कम ज्यादा दूध वाली चाय... आज भी उसे याद थी.

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पर, इन बीते सालों में एकएक कर के बहुत बड़ा बदलाव आया था. जो पाखी अकेले दिनभर घर के कामों में जू?ाती रहती थी, आज हर आदमी उस की मदद के लिए तैयार था.

मम्मीजी सब्जी काट कर दे देतीं, तो अरुण धुले कपड़ों को फैलाने व तह लगाने में उस की मदद कर देता. बच्चे दिनभर बाबा और दादी की रट लगाए रहते. अरुण को लगा मानो उस के घर की खुशियां वापस लौट आई हों.

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