‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’
‘‘आप मुझे डरा रही हैं?’’
‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’
‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’
कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.
‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’
राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.
ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.
भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.
‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’
मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.
माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.
ये भी पढ़ें- Valentine’s Special- दिये से रंगों तक: भाग 3
‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’
‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.
राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’
माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,
2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’
तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.
होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.
जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.
ये भी पढ़ें- Short Story: गुलाब यूं ही खिले रहें
लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.
राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’
‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’