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लेखक- शिव अवतार पाल

मयंक बेचैनी से कमरे में चहल- कदमी कर रहा था. रात के 10 बज चुके थे. वह सोने जा रहा था कि दीप के स्कूल से आए प्रधानाचार्य के फोन ने उसे परेशान कर दिया. प्रधानाचार्य ने कहा था कि दीप बीमार है और आप को याद कर रहा है.

‘‘उसे हुआ क्या है?’’ घबरा कर मयंक ने पूछा.

‘‘वायरल फीवर है.’’

‘‘कब से?’’

‘‘सुस्त तो वह कल शाम से ही था, पर फीवर आज सुबह हुआ है,’’ प्रधानाचार्य ने बताया.

‘‘क्या बेहूदा मजाक है,’’ मयंक के स्वर में सख्ती घुल गई थी, ‘‘तुरंत आप ने चैकअप क्यों नहीं करवाया? बच्चों की ऐसी ही देखभाल करते हैं आप लोग? मेरे बेटे को कुछ हो गया तो...’’

‘‘आप बेवजह नाराज हो रहे हैं,’’ प्रधानाचार्य ने उस की बात बीच में काट कर विनम्रता से कहा था, ‘‘यहां रहने वाले सभी बच्चों का घर की तरह खयाल रखा जाता है, पर उन्हें जब मांबाप की याद आने लगे तो उदास हो जाते हैं. यद्यपि हम पूरी कोशिश करते हैं कि ऐसा न हो, पर नए बच्चों के साथ अकसर ऐसी समस्या आ जाती है.’’

‘‘दीप अब कैसा है?’’ प्रधानाचार्य की विनम्रता से प्रभावित हो कर मयंक सहजता से बोला था.

‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. डाक्टर के साथ मैं लगातार उस की देखभाल कर रहा हूं. आप सुबह आ कर उस से मिल लें तो बेहतर रहेगा.’’

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वह तो इसी वक्त जाना चाहता था पर पिछले 2 घंटे से तेज बारिश हो रही थी. अब तक तो पूरा शहर टापू बन चुका होगा. रास्ते में कहीं स्कूटर फंस गया तो मुसीबत और बढ़ जाएगी. फिलहाल जाने का विचार छोड़ कर वह सोफे पर पसर गया. सामने फे्रम में जड़ी अंजलि की मुसकराती तसवीर रखी थी. उस के बारे में सोच कर उस के मुंह का स्वाद कसैला हो गया.

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