उन की बातों से आहत आलोक यह तय नहीं कर पा रहा था कि उम्र के इस पड़ाव पर वह अपने अंतर्मन की आवाज सुने या अपनी परिस्थितियों से समझौता कर मंत्रीजी का साथ दे.
अचानक रात के 2 बजे टेलीफोन की घंटी बजी तो रीता ने आलोक की तरफ देखा. वह उस समय गहरी नींद में था. वैसे भी आलोक मंत्री दीनानाथ के साथ 4 दिन के टूर के बाद रात के 11 बजे घर लौटा था. 1 महीने बाद इलेक्शन था, उस का मंत्रीजी के साथ काफी व्यस्त कार्यक्रम था.
कोई चारा न देख कर रीता ने अनमने मन से फोन उठाया. जब तक वह कुछ कह पाती, उधर से मंत्रीजी की पत्नी का घबराया स्वर सुनाई दिया, ‘‘आलोक, मंत्रीजी की तबीयत ठीक नहीं है. शायद हार्टअटैक पड़ा है. जल्दी किसी डाक्टर को ले कर पहुंचो.’’
‘‘जी मैम, वह तो सो रहे हैं.’’
‘‘अरे, सो रहा है तो उसे जगाओ न, प्लीज. और हां, जल्दी से वह किसी डाक्टर को ले कर यहां पहुंचे.’’
‘‘अभी जगाती हूं,’’ कह कर रीता ने फोन रख दिया.
आलोक को जगा कर रीता ने वस्तुस्थिति बताई तो उस ने झटपट शहर के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डा. नीरज सक्सेना को फोन मिलाया पर वह नहीं मिले, वह दिल्ली गए हुए थे.
उन के बाद डा. सीताराम का शहर में नाम था. आलोक ने उन्हें फोन मिलाया. वह मिल गए तो उन्हें मंत्रीजी की सारी स्थिति बताते हुए उन से जल्द से जल्द वहां पहुंचने का आग्रह किया.
जब आलोक मंत्रीजी के घर पहुंचा तो उसी समय डा. सीताराम भी अपनी गाड़ी से उतर रहे थे. उन्हें देखते ही मंत्रीजी की पत्नी बोलीं, ‘‘अरे, आलोक, इन्हें क्यों बुला लाए, इन्हें कुछ आता भी है...इन के इलाज से मुन्ने का साधारण बुखार भी महीने भर में छूटा था.’’