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‘क्योें? उन से क्यों पूछें? यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस बच्चे को हम ही तो पालेंगेपोसेंगे.’

‘फिर भी, यह बच्चा उन के ही परिवार का अंग होगा न, उन्हीं का वंशज कहलाएगा न?’

यह सुन कर अर्चना बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘वह सब मैं नहीं जानती. तुम्हारे मातापिता से तुम्हीं निबटो. यह अच्छी रही, हर बात में अपने मांबाप की आड़ लेते हो. क्या तुम अपनी मरजी से एक भी कदम उठा नहीं सकते?’

रजनीश के मांबाप ने अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने के प्रस्ताव का जम कर विरोध किया इधर अर्चना भी अड़ गई कि वह दीपू को गोद ले कर ही रहेगी.

‘‘रजनीश…’’ मोहिनी ने आवाज दी, ‘‘खाना खाने नीचे, डाइनिंग रूम में चलोगे या यहीं पर कुछ मंगवा लें?’’

यह सुन कर रजनीश की तंद्रा टूटी. एक ही झटके में वह वर्तमान में लौट आया. बोला, ‘‘यहीं पर मंगवा लो.’’

खाना खाते वक्त रजनीश ने पूछा, ‘‘कल शाम को तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘सोच रही थी यहां की जौहरी की दुकानें देखूं. मेरी एक सहेली मुझे ले जाने वाली है.’’

‘‘ठीक है, मैं भी शायद व्यस्त रहूंगा.’’

रजनीश ने अर्चना को फोन किया, ‘‘अर्चना, हमारा कल का प्रोग्राम तय है न?’’

‘‘हां, अवश्य.’’

फोन का चोंगा रख कर अर्चना उत्तेजित सी टहलने लगी कि रजनीश अब क्यों उस से मिलने आ रहा है. उसे अब मुझ से क्या लेनादेना है?

तलाकनामे पर हुए हस्ताक्षर ने उन के बीच कड़ी को तोड़ दिया था. अब वे एकदूसरे के लिए अजनबी थे.

‘अर्चना, तू किसे छल रही है?’ उस के मन ने सवाल किया.

रजनीश से तलाक ले कर वह एक पल भी चैन से न रह पाई. पुरानी यादें मन को झकझोर देतीं. भूलेबिसरे दृश्य मन को टीस पहुंचाते. बहुत ही कठिनाई से उस ने अपनी बिखरी जिंदगी को समेटा था, अपने मन की किरिचों को सहेजा था.

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