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लेखक- रमणी मोटाना

‘‘अर्चना,’’ उस ने पीछे से पुकारा.

‘‘अरे, रजनीश…तुम?’’ उस ने मुड़ कर देखा और मुसकरा कर बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं, कैसा अजब इत्तिफाक है कि तुम दिल्ली की और मैं मुंबई का रहने वाला और हम मिल रहे हैं बंगलौर की सड़क पर. वैसे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं आजकल यहीं रहती हूं. यहां घडि़यों की एक फैक्टरी में जनसंपर्क अधिकारी हूं. और तुम?’’

‘‘मैं यहां अपने व्यापार के सिलसिले में आया हुआ हूं. मेरी पत्नी भी साथ है. हम पास ही एक होटल में ठहरे हैं.’’

2-4 बातें कर के अर्चना बोली, ‘‘अच्छा…मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे रुको,’’ वह हड़बड़ाया, ‘‘इतने  सालों बाद हम मिले हैं, मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं. क्या हम दोबारा नहीं मिल सकते?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहते हुए अर्चना ने विजिटिंग कार्ड पर्स में से निकाला और उसे देती हुई बोली, ‘‘यह रहा मेरा पता व फोन नंबर. हो सके तो कल शाम की चाय मेरे साथ पीना और अपनी पत्नी को भी लाना.’’

अर्चना एक आटो-रिकशा में बैठ कर चली गई. रजनीश एक दुकान में घुसा जहां उस की पत्नी मोहिनी शापिंग कर तैयार बैठी थी.

‘‘मेरीखरीदारी हो गई. जरा देखो तो ये साडि़यां ज्यादा चटकीली तो नहीं हैं. पता नहीं ये रंग

मुझ पर खिलेंगे

या नहीं,’’ मोहिनी बोली.

रजनीश ने एक उचटती नजर मोहिनी पर डाली. उस का मन हुआ कि कह दे, अब उस के थुलथुल शरीर पर कोई कपड़ा फबने वाला नहीं है, पर वह चुप रह गया.

मोहिनी की जान गहने व कपड़ों में बसती है. वह सैकड़ों रुपए सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्चती है. घंटों बनती-संवरती है. केश काले करती है, मसाज कराती है. नाना तरह के उपायों व साधनों से समय को बांधे रखना चाहती है. इस के विपरीत रजनीश आगे बढ़ कर बुढ़ापे को गले लगाना चाहता है. बाल खिचड़ी, तोंद बढ़ी हुई, एक बेहद नीरस, उबाऊ जिंदगी जी रहा है वह. मन में कोई उत्साह नहीं. किसी चीज की चाह नहीं. बस, अनवरत पैसा कमाने में लगा रहता है.

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कभीकभी वह सोचता है कि वह क्यों इतनी जीतोड़ मेहनत करता है. उस के बाद उस के ऐश्वर्य को भोगने वाला कौन है. न कोई आसऔलाद न कोई नामलेवा… और तो और इसी गम में घुलघुल कर उस की मां चल बसीं.

संतान की बेहद इच्छा ने उसे अर्चना को तलाक दे कर मोहिनी से ब्याह करने को प्रेरित किया था. पर उस की इच्छा कहां पूरी हो पाई थी.

होटल पहुंच कर रजनीश बालकनी में जा बैठा. सामने मेज पर डिं्रक का सामान सजा हुआ था. रजनीश ने एक पैग बनाया और घूंटघूंट कर के पीने लगा.

उस का मन बरबस अतीत में जा पहुंचा.

कालिज की पढ़ाई, मस्तमौला जीवन. अर्चना से एक दिन भेंट हुई. पहले हलकी नोकझोंक से शुरुआत हुई, फिर छेड़छाड़, दोस्ती और धीरेधीरे वे प्रेम की डोर में बंध गए थे.

एक रोज अर्चना उस के पास घबराई हुई आई और बोली, ‘रजनीश, ऐसे कब तक चलेगा?’

‘क्या मतलब?’

‘हम यों चोरी- छिपे कब तक मिलते रहेंगे?’

‘क्यों भई, इस में क्या अड़चन है? तुम लड़कियों के होस्टल में रहती हो, मैं अपने परिवार के साथ. हमें कोई बंदिश नहीं है.’

‘ओहो…तुम समझते नहीं, हम शादी कब कर रहे हैं?’

‘अभी से शादी की क्या जल्दी पड़ी है, पहले हमारी पढ़ाई तो पूरी हो जाए…उस के बाद मैं अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाऊंगा फिर जा कर शादी…’

‘इस में तो सालों लग जाएंगे,’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘तो लगने दो न…हम कौन से बूढ़े हुए जा रहे हैं.’

‘हमारे प्यार को शादी की मुहर लगनी जरूरी है.’

‘बोर मत करो यार,’ रजनीश ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘तनमनधन से तो तुम्हारा हो ही चुका हूं, अब अग्नि के सामने सिर्फ चंद फेरे लेने में ही क्या रखा है.’

‘रजनीश,’ अर्चना उस की गिरफ्त से छूट कर घुटे हुए स्वर में बोली, ‘मैं…मैं प्रेग्नैंट हूं.’

‘क्या…’ रजनीश चौंका, ‘मगर हम ने तो पूरी सावधानी बरती थी…खैर, कोई बात नहीं. इस का इलाज है मेरे पास, अबार्शन.’

‘अबार्शन…’ अर्चना चौंक कर बोली, ‘नहीं, रजनीश, मुझे अबार्शन से बहुत डर लगता है.’

‘पागल न बनो. इस में डरने की क्या बात है? मेरा एक दोस्त मेडिकल कालिज में पढ़ता है. वह आएदिन ऐसे केस करता रहता है. कल उस के पास चले चलेंगे, शाम तक मामला निबट जाएगा. किसी को कानोंकान खबर भी न होगी.’

‘लेकिन जब हमें शादी करनी ही है तो यह सब करने की जरूरत?’

‘शादी करनी है सो तो ठीक है, लेकिन अभी से शादी के बंधन में बंधना सरासर बेवकूफी होगी. और जरा सोचो, अभी तक मेरे मांबाप को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. अचानक उन के सामने फूला पेट ले कर जाओगी तो उन्हें बुरी तरह सदमा पहुंचेगा.

‘नहीं, अर्चना, मुझे उन्हें धीरेधीरे पटाना होगा. उन्हें राजी करना होगा. आखिर मैं उन की इकलौती संतान हूं. मैं उन की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.’

‘प्यार का खेल खेलने से पहले ही यह सब सोचना था न?’ अर्चना कुढ़ कर बोली.

‘डार्ल्ंिग, नाराज न हो, मैं वादा करता हूं कि पढ़़ाई पूरी होते ही मैं धूमधड़ाके से तुम्हारे द्वार पर बरात ले कर आऊंगा और फिर अपने यहां बच्चों की लाइन लगा दूंगा…’

लेकिन शादी के 10-12 साल बाद भी बच्चे न हुए तो रजनीश व अर्चना ने डाक्टरों का दरवाजा खटखटाया था और हरेक डाक्टर का एक ही निदान था कि अर्चना के अबार्शन के समय नौसिखिए डाक्टर की असावधानी से उस के गर्भ में ऐसी खराबी हो गई है जिस से वह भविष्य में गर्भ धारण करने में असमर्थ है.

यह सुन कर अर्चना बहुत दुखी हुई थी. कई दिन रोतेकलपते बीते. जब जरा सामान्य हुई तो उस ने रजनीश को एक बच्चा गोद लेने को मना लिया.

अनाथाश्रम में नन्हे दीपू को देखते ही वह मुग्ध हो गई थी, ‘देखो तो रजनीश, कितना प्यारा बच्चा है. कैसा टुकुरटुकुर हमें ताक रहा है. मुझे लगता है यह हमारे लिए ही जन्मा है. बस, मैं ने तो तय कर लिया, मुझे यही बच्चा चाहिए.’

‘जरा धीरज धरो, अर्चना. इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. एक बार अम्मां व पिताजी से भी पूछ लेना ठीक रहेगा.’

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