लेखक- ममता मेहता

कब से कह रहा हूं कि इस टंडीरे को हटा कर मोबाइल फोन ले लो, पर नहीं, चिपके रहेंगे अपने उन्हीं पुराने बेमतलब, बकवास सिद्धांतों से. मेरे सभी दोस्तों के पापा अपने पास एक से बढ़ कर एक मोबाइल रखते हैं और जाने क्याक्या बताते रहते हैं वे मुझे मोबाइल के बारे में. एक मैं ही हूं जिसे ढंग से मोबाइल आपरेट करना भी नहीं आता.’’

अंदर से अपने लाड़ले का पक्ष लेती हुई श्रीमतीजी की आवाज आई, ‘‘अब घर में कोई चीज हो तब तो बच्चे कुछ सीखेंगे. घर में चीज ही न होगी तो कहां से आएगा उसे आपरेट करना. वह तो शुक्र मना कि मैं थी तो ये 2-4 चीजें घर में दिख रही हैं, वरना ये तो हिमालय पर रहने लायक हैं... न किसी चीज का शौक न तमन्ना...मैं ही जानती हूं किस तरह मैं ने यह गृहस्थी जमाई है. चार चीजें जुटाई हैं.’’

श्रीमतीजी की आवाज घिसे टेप की तरह एक ही सुर में बजनी शुरू हो उस से पहले ही मैं ने सुनाने के लिए जोर से कहा, ‘‘घर में घुसते ही गरमगरम चाय के बजाय गरमागरम बकवास सुनने को मिलेगी यह जानता तो घर से बाहर ही रहता.’’

श्रीमतीजी दांत भींच कर बोलीं, ‘‘आते ही शुरू हो गया नाटक. जब घर में कोई चीज लेने की बात होती है तो ये घर से बाहर जाने की सोचना शुरू कर देते हैं.’’

मैं कुछ जवाब देता इस से पहले ही अपना पप्पू बोल पड़ा, ‘‘पापा, ये लैंड लाइन फोन आजकल किसी काम के नहीं रहे हैं. आजकल तो सभी कंपनियां बेहद सस्ते दामों पर मोबाइल उपलब्ध करवा रही हैं. आप अब एक मोबाइल फोन ले ही लो.’’

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