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रेशमा की आंखें आंसुओं से तर थीं. उस की हिचकियां बंधी थीं. अम्मी ने उसे संभाला और कक्ष में ले गईं. विजय सिंह को पता चल गया था कि पठान ने महबूब खान की कई बार जान बचाई थी. इस कारण उन्होंने पठान को बचन दिया था कि वे उस से अपनी बेटी रेशमा का विवाह कर के एहसानों का बदला चुकाएंगे.

रात में जब रेशमा और विजय सिंह के बीच बातें हो रही थी, तब पास के तंबू में सो रहे पठान ने सारी बातें सुन ली थीं. पठान को नींद नहीं आई. खड़का होने पर पठान ने देखा कि रेशमा अपनी अम्मा के साथ विजय सिंह से मिलने आई और उन के बीच का वार्तालाप भी सुन लिया था.

पठान की सब समझ में आ गया. वह जान गया कि रेशमा उस से नहीं ठाकुर सा विजय सिंह से प्रेम करती है. बस, पठान ने मन ही मन एक निर्णय कर लिया कि उसे रेशमा का दिल जीतने के लिए क्या करना है.

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अगले दिन कजली तीज का त्यौहार था. गांव की सुहागिनें एवं युवतियां सोलह शृंगार कर के झूले पर जाने से पहले उस मैदान में पहुंच गईं. जहां रेशमा को पाने के लिए 2 वीरों के बीच युद्ध होना था. तय समय पर शाहगढ़ के तमाम नरनारी उस मैदान में आ जमे थे. विजय सिंह ने केसरिया वस्त्र धारण किए और कुलदेवी को प्रणाम करने के बाद युद्ध मैदान में कूद गए.

पठान खान भी मैदान में आ गए. नगाड़े पर डंका बजते ही दोनों योद्धा आपस में भिड़ गए. मल्ल युद्ध में दोनों एकदूजे को परास्त करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाने लगे. मगर ताकत में दोनों बराबर थे. तय समय तक दोनों बराबरी पर छूटे.

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