लेखक-  सत्यव्रत सत्यार्थी

भाग-1

लेकिन जीशान के आने से उन की परेशानियां और बढ़ गई थीं. गुजरात जल रहा था. राजधानी अहमदाबाद की स्थिति और खतरनाक हो चुकी थी. हर महल्ले की तंग गलियों में मारकाट, खूनखराबा मचा हुआ था. आदमी कहलाने वाले चेहरे हिंसक दरिंदे बन गए थे, जीवन उदास हो रहा था और मृत्यु तांडव कर रही थी. हर आंख सशंकित और हर चेहरा भयातुर. भयानक असुरक्षा की भावना ने लोगों को अपने घरों में कैद रहने को विवश कर दिया था.

यामिनी बेचैन थी. उसे समय से अस्पताल पहुंच जाने का कर्तव्यबोध बेचैन किए जा रहा था. उसे लग रहा था कि अस्पताल पहुंचाने वाली परमिट प्राप्त एंबुलेंस कहीं उन्मादियों के बीच फंस गई थी. वह अधिक समय तक रुकी नहीं रह सकती थी. उस पर आश्रित उस के मरीज आशा भरी नजरों से उस के आने की बाट जोह रहे होंगे. यामिनी को जब पक्का भरोसा हो गया कि अस्पताल की गाड़ी अब नहीं आएगी तो वह मुख्य सड़क को छोड़ कर तंग और सुनसान गलियों से हो कर, बचतीबचाती किसी प्रकार अस्पताल पहुंची. ड्यूटी रूम में पहुंचते ही यामिनी निढाल हो कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई, थकान और रोंगटे खडे़ कर देने वाले दृश्यों के बारे में सोच कर उसे खुद ही ‘आदमी’ होने पर संदेह हो रहा था.

कैसी है सीमा

अस्पताल में घायलों के आने का क्रम लगातार जारी था और सभी वार्ड अंगभंग घायलों की दिल दहला देने वाली कराहों से थरथरा रहे थे. अचानक यामिनी के कानों में सीनियर सिस्टर मिसेज डेविडसन के पुकारने की आवाज सुनाई दी तो उस की तंद्रा भंग हुई. ‘‘यामिनी, बेड नं. 11 के मरीज को जा कर देख तो लो. वह दर्द से कराह तो रहा है किंतु किसी भी नर्स से न तो डे्रसिंग करवा रहा है और न इंजेक्शन लगवा रहा है,’’ डेविडसन बोलीं. यामिनी वार्ड में जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि मिसेज डेविडसन की चेतावनी के लहजे से भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘मिस यामिनी, हर पेशेंट से रिश्ता कायम कर लेने की बेतुकी आदत तुम्हारे लिए बहुत भारी पडे़गी. बहुत पछ- ताओगी एक दिन.’’ ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, मैडम.’’ ‘‘फिर वह तुम्हीं से ड्रेसिंग बदलवाने की जिद क्यों कर रहा है?’’ ‘‘मैडम, आप तो देख ही रही हैं कि शहर का हर आदमी अपने जीवन का युद्ध लड़ रहा है और अस्पताल में ऐसे घायल आ रहे हैं जिन्होंने अपने तमाम रिश्ते खो दिए हैं. निपट अकेला हो जाने का एहसास उन्हें इस लड़ाई में कमजोर बना रहा है. महज कुछ मीठे शब्द, थोड़ा सा अपनापन और स्नेह दे कर मैं उन्हें इस संघर्ष को जीतने में सहायता करती हूं, बस.’’ ‘‘यह तुम्हारा लेक्चर मेरे पल्ले नहीं पड़ने वाला. बस, हमें अपनी ड्यूटी से मतलब होना चाहिए. पर मेरा मन कहता है कि रिश्ता कायम कर लेने की तुम्हारी यह आदत कहीं तुम्हारे लिए मुसीबत न बन जाए.’’ ‘‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला मैडम, पेशेंट ठीक हो जाए बस, वह अपने घर और मैं अपनी राह. बात समाप्त.’’ ‘‘हां, आमतौर पर अस्पतालों में तो यही होता है. किंतु यह बात तुम्हारे साथ नहीं है.’’ ‘‘क्यों? मरीजों के प्रति मेरा व्यवहार क्या औरों से अलग है?’’ ‘‘हां,’’ सिस्टर डेविडसन बोलीं, ‘‘यहां आने वाला हर पुरुष पेशेंट तुम्हें अपनी बहन कैसे बना लेता है, और वह भी बस, एक ही दिन में.’’ ‘‘बिलकुल वैसे ही जैसे मैं उन्हें तत्काल अपना भाई बना लेती हूं,’’ यामिनी ने मुसकराते हुए उत्तर दिया और ड्यूटी रूम से निकल कर बेड नं. 11 की ओर बढ़ गई. बेड नं. 11 के निकट पहुंचते ही यामिनी ने कहा, ‘‘जीशान साहब, आप ने मुझे बहुत परेशान किया. सिस्टर से आप ने इंजेक्शन क्यों नहीं लगवाया? क्या उस के हाथ में कांटे हैं जो आप को चुभ जाएंगे?’’ ‘‘ऐसा नहीं है सिस्टर. यहां के हर कर्मचारी को मैं सलाम करता हूं, मगर मैं ने आप से पहले ही बोल दिया था...’’ उस की बात बीच में ही काटते हुए यामिनी बोली, ‘‘क्या बोल दिया था? यही न कि तुम मेरे ही हाथ से दवा खाओगे. तुम्हारी बच्चों जैसी यह जिद बिलकुल ठीक नहीं है. मुझे और भी काम रहते हैं भाई. तुम ने समय पर इंजेक्शन नहीं लगवाया, समय पर दवा नहीं ली तो तुम्हें काफी नुकसान पहुंच सकता है. ’’

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