वह सुधा को मोबाइल मिला कर पूछने ही वाला था कि मां के यहां चल रही हो या नहीं. लेकिन उस ने सोचा कि अगर उसे मां के यहां चलना होता तो वह खुद न फोन कर देती. हर इतवार की दोपहर का भोजन वे दोनों मां के यहां ही तो करते हैं. मां हर इतवार को तड़के ही उठ जाती हैं और उन के लिए स्पैशल खाना बनाने लगती हैं.
जब भी वह सुधा के साथ जाता है, खाने की मेज तरहतरह के पकवानों से सजी रहती है और मां उसे ठूंसठूंस कर खिलाती हैं. अगर वह इत्तफाक से जा नहीं पाता है तो उस दिन वे टिफिन कैरियर में सारा खाना भर कर उस के यहां चली आती हैं और उसे खिलाने के बाद ही खुद खाती हैं. आज भी मां उस के लिए खाना बनाने लग गई होंगी. उस ने मां को फोन किया, उधर से पापा बोल रहे थे, ‘‘हैलो, कौन, विकास?’’
‘‘हां, मैं आज...’’ इस से पहले कि वह अपनी बात पूरी करता, उधर से मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘आज तुम आ रहे हो न?’’
‘‘हां, मां.’’
‘‘मैं तो घबरा गई थी कि कहीं तुम आने से इनकार न कर दो.’’
‘‘लेकिन मां, सुधा अभी मायके से नहीं लौटी.’’
‘‘नहीं लौटी तो तुम आ जाना. आ रहे हो न?’’
‘‘हां मां,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.
तब तक’’ गैस पर चाय उफन कर बाहर आई और गैस बुझ गई.हड़बड़ा कर उस ने गैस बंद कर दी और चाय छान कर एक कप में उड़ेलने लगा. कप लबालब भर गया. अरे, यह तो 2 जनों की चाय बना बैठा. अब उसे अकेले ही पीनी पड़ेगी. वह बैठ कर चाय पीने लगा.