‘‘कभीकभी लगता है, भैया, तुम ने अच्छा ही किया. तुम इस लड़ाईझगड़े से दूर रहे हो. ऐसा दिन नहीं बीतता जिस दिन खटपट न होती हो.’’
उस ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ मूकभाव से खिड़की से आसमान को देखने लगा. बाहर 2 बडे़बडे़ बादल आपस में टकराए. जोरों की गड़गड़ाहट हुई और मामूली सी झड़ी ने मूसलाधार बारिश का रूप ले लिया.
‘‘भैया, इस बार भी सुधा को नहीं लाए?’’उस ने अचकचा कर आदर्श की ओर देखा.
‘‘क्या बात है, भैया, तुम आज कुछ उदासउदास से हो?’’
‘‘कुछ नहीं.’’
‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई. मां ने तुम्हें उपमा देने के लिए कहा था,’’ कह कर आदर्र्श चली गई.
जहां वह बैठा था, खिड़की से वहां तक बौछार आने लगी थी और वह उस हलकी सी फुहार से भीग कर एक सुखद झुरझुरी सी लेने लगा. सुधा से मुलाकात के प्रथम महीनों से भी वह ऐसी ही सुखद झुरझुरी से भर उठा था.
खंजन सी आंखें, चौड़ा चेहरा, दरमियाना कद, गोरीचिट्टी, हंसे तो हरसिंगार के फूल झड़ जाएं. किसी पार्टी में उस की एक झलक पा कर वह उसे पाने के लिए उन्मत्त सा हो उठा था. किसी तरह परिचय कर के उस ने उस से पहले दोस्ती की और फिर शादी करने का प्रस्ताव रख दिया था. लेकिन मां बौखला उठी थीं. जहर खा कर मरने की धमकी देने लगी थीं.
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पर वह अपने निर्णय से डिगा नहीं और पापा ने कह दिया था कि उस से संबंध जोड़ने से पहले तुम्हें हमारे साथ संबंध तोड़ना पड़ेगा.
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