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‘बंटी के जाने के बाद, बंटी कहां जा रहा है?’ दादी मां ने आश्चर्य से पूछा. ‘बंटी को हम बोर्डिंग में भेज रहे हैं. कुछ दिनों से हम देख रहे हैं कि वह बिगड़ता जा रहा है. वहां रहेगा तो ठीक रहेगा,’ कहते हुए मुकेश ने उसे गोद में उठा लिया.

दादी मां ने विरोध जताते हुए कहा, ‘अभी तो बंटी बहुत छोटा है. इस समय तो उसे मां की गोद और पिता के साए की जरूरत है.’

‘मां, अब  वह समय गया जब सारी जिंदगी बच्चों को मांबाप के साए की जरूरत होती थी. आजकल बच्चों को अपने रास्ते खुद तलाश करने पड़ते हैं, तभी वे जीवन में आगे बढ़ते हैं. बंटी को गोद से उतारते हुए मुकेश ने कहा, ‘आज हमारा बेटा अपने पापा के साथ बाजार जाएगा और ढेर सारे खिलौने खरीदेगा.’

जाने वाले दिन सुबह बंटी दादी से विदा लेने आया था. वह कुछ उदास सा था, यह देख कर दादी का दिल भर आया. वह पोते को ले कर बाहर आ गईं. हरि गाड़ी निकाल चुका था. शालिनी बंटी का सामान रखवा रही थी. मुकेश बोले, ‘मां, हम बंटी को छोड़ कर रात तक वापस आ जाएंगे, तुम अपना ध्यान रखना. मैं ने हरि से कह दिया है कि वह तुम्हारे पास रहेगा.’

दादी मां ने कुछ जवाब नहीं दिया. उन की निगाहें तो बंटी पर लगी थीं, जो जाते वक्त उन से सट कर खड़ा हो गया था. पलकों से आंसू छलकने को थे. उन्होंने बंटी का हाथ पकड़ कर उसे गाड़ी में बैठा दिया. बंटी ने दादी की ओर देख कर नन्ही हथेली से अपने आंसू पोंछे और दादी ने अपने आंसू अपनी पलकों में समेट लिए और कुछ पलों के लिए मुंह फेर लिया.

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