पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- हमसफर: भाग 1
शादी में बस चंद दिन ही बचे थे तब राहुल ने पूजा को बताया कि वह एच.आई.वी. पोजिटिव है. एड्स से ग्रसित वह धीरेधीरे मौत के करीब जा रहा है. 2 वर्ष पहले एक एक्सीडेंट के बाद इलाज के दौरान डाक्टरों की लापरवाही से उसे संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था.
पूजा राहुल को आश्वासन देती है कि वह सब असलियत जान कर भी शादी कर उस की हमसफर जरूर बनेगी और साथ ही राहुल से वचन लेती है कि अपनी बीमारी को घरवालों से राज रखेगा. राहुल के यह कहने पर कि बीमारी को लोगों से छिपाना आसान नहीं होगा, तो पूजा का जवाब था कि ‘शादी के बाद वह सब देखना मेरा काम होगा. लोगों को क्या जवाब देना है, यह भी मैं ही देखूंगी.’
एक सप्ताह बाद दोनों की शादी हो जाती है. इस शादी के पीछे का भयानक सच उन दोनों के अलावा शादी में शामिल कोई भी तीसरा नहीं जानता था. अग्नि के फेरे लेते हुए दोनों के मस्तिष्क में बहुत कुछ चल रहा था लेकिन वे चेहरे से एकदम सामान्य दिख रहे थे. अब आगे…
पूजा की डोली ससुराल आई.
ससुराल में आते ही पूजा औरतों
में घिर गई थी. शादी के बाद की रस्में जो पूरी की जानी थीं.
शादी के बाद राहुल और पूजा के पहले इम्तिहान की घड़ी सुहागरात थी.
रस्मों के पूरा होने के बाद हंसी- ठिठोली करती पूजा की ननद रेखा और उस की कुछ सहेलियों ने उन दोनों को सुहागरात वाले कमरे के अंदर धकेल दिया था.
अकेले पड़ते ही दोनों ने एकदूसरे को देखा.
सुहागरात का अर्थ दोनों ही समझते थे मगर उन दोनों को इस बात का भी एहसास था कि वह आम पतिपत्नियों जैसे नहीं थे.
सुहाग सेज पर गुलाब के फूलों की पंखडि़यां बिखरी हुई थीं. इन पंखडि़यों को सुबह तक वैसा ही रहना था, क्योंकि जिस उद्देश्य से उन को सेज पर बिखेरा गया था उस उद्देश्य की पूर्ति उन के लिए वर्जित थी.
‘‘तुम ने मेरे साथ शादी कर के अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है,’’ अपनी कशमकश के बीच खालीखाली उदास नजरों से पूजा को देखते हुए राहुल ने कहा.
‘‘लेकिन मुझ को अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं,’’ पूजा ने कहा.
ये भी पढ़ें- काश, आपने ऐसा न किया होता: भाग 2
‘‘क्या इस सुहागरात का हमारे लिए कोई मतलब है?’’
‘‘क्यों नहीं है? क्या एक दंपती के संपूर्ण जीवन का आधार केवल सेक्स ही है? क्या सेक्स के बगैर स्त्रीपुरुष के विवाहित संबंधों का कोई अर्थ नहीं रह जाता? मैं इस को नहीं मानती. सेक्स पतिपत्नी के रिश्ते का एक हिस्सा है. इस के बिना भी रिश्ते को निभाया जा सकता है, क्योंकि सेक्स से ही संपूर्ण रिश्ता नहीं बनता. जैसे शरीर के किसी एक अंग को अलग कर देने से इनसान मर नहीं जाता, उसी तरह पतिपत्नी के रिश्ते में से सेक्स को अलग करने से रिश्ते की मौत भी नहीं होती.
हम दोनों तो सच को जानते हुए ही इस रिश्ते में बंधे हैं. सेक्स संपर्क के बगैर भी हम इस रात को आनंदमय बनाएंगे. यह हम दोनों के लिए ही पहली परीक्षा है और हमें बिना किसी भय और निराशा के इस परीक्षा की अग्नि में से तप कर बाहर निकलना ही होगा.’’
यह कहते हुए शादी के लाल जोड़े में लिपटी हुई पूजा ने एड्स से पीडि़त अपने पति का सिर अपने सीने पर रख लिया. ऐसा करते हुए उस के चेहरे पर जरा सा भी डर और घबराहट न थी. मन को जिस आनंद की अनुभूति हो रही थी वह शरीर के आनंद से कम नहीं थी.
सुहागरात उन दोनों ने एकदूसरे से बहुत सी बातें करते हुए बिता दी. पतिपत्नी के बजाय एक दोस्त की तरह उन को एकदूसरे को अधिक जानने का मौका मिला.
पूजा राहुल के मस्तिष्क को मृत्युभय से मुक्त कर के उस के भीतर एक नया विश्वास जगाने में सफल रही.
सुबह की किरण फूटने से कुछ देर पहले ही दोनों की आंख लग गई.
पूजा की आंख खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. रोशनी काफी फैल चुकी थी. राहुल अभी भी सो रहा था.
पूजा दर्पण के सामने खड़ी हो खुद को निहारने लगी. उस का दुलहन वाला मेकअप वैसे का वैसा ही था. वस्त्रों पर सलवटें भी नहीं आई थीं. कलाइयों में पड़ी कांच की चूडि़यां भी वैसी की वैसी ही थीं.
कमरे के अंदर क्या हुआ था वह उन दोनों के बीच का राज था. मगर सब को ऐसा लगना तो चाहिए कि उन्होंने सुहागरात मनाई थी.
यह सोच कर पूजा ने पहले अपने बंधे हुए जूड़े को खोला और फिर उस को बेतरतीब से दोबारा बांधा. होंठों की लिपस्टिक की गाढ़ी लाल रंगत को फीका करने के लिए इस तरह से उस को साफ किया कि वह थोड़ी सी होंठों के इर्दगिर्द बिखर जाए. अपनी दोनों कलाइयों में पड़ी कांच की कुछ चूडि़यों को अपनी उंगलियों के दबाव से चटख कर तोड़ डाला. ऐसा करते वक्त एक चूड़ी का तीखा कांच उस की कलाई में चुभ भी गया.
पूजा ने टूटी कांच की चूडि़यों के टुकड़ों को बिस्तर पर बिखेर दिया, इतना ही नहीं, बिस्तर पर बिखरी फूलों की पत्तियों को भी उस ने हथेली से मसल डाला.
सब तरह से संतुष्ट होने के बाद पूजा कमरे का बंद दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई.
कमरे से बाहर पूजा का सब से पहले सामना अपनी ननद रश्मि से हुआ. रश्मि की आंखों में अर्थभरी शरारत थी जोकि रिश्ते के हिसाब से स्वाभाविक थी.
‘‘गुडमार्निंग, भाभी,’’ रश्मि ने कहा, ‘‘आप की आंखें गुलाबी हो रही हैं, लगता है भैया ने काफी परेशान किया है रात को?’’
ये भी पढ़ें- जिंदगी जीने का हक: भाग 2
ननद रश्मि के ऐसा कहने पर पूजा ने पहले तो लजाने का नाटक किया फिर प्यार से उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाती हुई बोली, ‘‘चुप, बच्चे इस तरह के सवाल नहीं पूछते.’’
ननद रश्मि के साथ ही पूजा अपने सासससुर के कमरे में पहुंची और अपने सिर को साड़ी के पल्लू से ढकते हुए बारीबारी से उन दोनों के पांव छुए.
पांव छूने पर आशीर्वाद देती हुई पूजा की सास शकुंतला ने उस को अपने सीने से लगा लिया और बोलीं, ‘‘सुहागवती रहो, बहू. जल्दी ही तुम्हारी गोद भरे और मैं पोते की खुशी देखूं.’’
शादी के बाद दिन आगे को सरकने लगे. बीतने वाला हर लम्हा जैसे कीमती था.
राहुल के जीवन की डोर हर बीतते हुए लम्हे के साथ छोटी हो रही थी.
पूजा बीतते हर लम्हे को इतने सुख और खुशियों से भर देना चाहती थी कि आने वाली मौत की आहट राहुल को सुनाई न दे.
शारीरिक सुख के अलावा एक अच्छी पत्नी के रूप में जीवन के सारे सुख पूजा राहुल को देना चाहती थी. वह उस की इतनी सेवा करना चाहती थी कि बाद में किसी बात पर पछताना न पड़े.
पूजा की सेवा और समर्पण के भाव को राहुल खामोशी से देखता और कहता, ‘‘मेरी जिंदगी का सफर ज्यादा लंबा नहीं. इस में हमसफर बनते हुए गलती से भी मुझ से मोह मत कर बैठना, वरना बाद में बड़ी तकलीफ होगी.’’
‘‘मैं जानती हूं कि मैं क्या कर रही हूं और आगे क्या होने वाला है. किंतु इस तरह की बातें कर के मुझ को कमजोर मत बनाओ, राहुल.’’
शादी के 5 माह बाद अचानक ही राहुल की सेहत तेजी से गिरनी शुरू हो गई. राहुल का वजन कम हो रहा था. उस के चेहरे की जर्दी बढ़ रही थी और यह देख कर घर के लोग परेशान थे.
‘‘राहुल की सेहत लगातार खराब हो रही है बहू, पता नहीं क्या बात है. वह काफी लापरवाह किस्म का इनसान है. तुम ही उसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखलाओ,’’ आखिर एक दिन सास शकुंतला ने पूजा को कह ही दिया. उस के कहने के अंदाज से पता चलता था कि वह बेटे की गिरती सेहत को स्त्रीपुरुष के सेक्स संबंधों से जोड़ कर देख रही थीं.
पूजा को इस से हैरानी नहीं हुई थी. वह जानती थी कि राहुल की गिरती सेहत को देख कर लोग ऐसा ही सोच सकते थे. अब किसी को क्या मालूम अधिक सेक्स तो एक तरफ, उन में तो सेक्स संबंध बना भी नहीं था.
अपने सारे मनोभावों को छिपाते हुए पूजा ने सास से कहा, ‘‘आप ठीक कह रही हैं मांजी, मैं कल ही इन्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखलाने ले जाऊंगी.’’
अगले दिन राहुल को साथ ले कर किसी डाक्टर के पास जाने का दिखावा करती हुई पूजा घर से बाहर निकली. किंतु किसी डाक्टर के यहां जाने के बजाय उन्होंने 2-3 घंटे एक मौल में बिताए.
ये भी पढ़ें- एक भावनात्मक शून्य: भाग 2
थकावट होने पर उन दोनों ने मौल के रेस्तरां में बैठ कर कोल्ड डिं्रक पी और साथ में हलका सा फास्ट फूड भी लिया.
रेस्तरां में बैठे थकीथकी आंखों से पूजा को देखते हुए राहुल ने कहा, ‘‘हम जो कर रहे हैं क्या वह अपनों के साथ धोखा नहीं?’’
‘‘नहीं, मैं नहीं मानती कि हम किसी को कोई धोखा दे रहे हैं,’’ पूजा ने जवाब दिया.
‘‘एड्स से रोजाना दुनिया में सैकड़ों लोग मरते हैं. अगर मैं भी मर जाऊंगा तो कौन सी अनोखी बात होगी? मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम मेरी बीमारी को छिपा कर क्यों रखना चाहती हो? एकदम से मेरी मौत के सदमे को झेलने से बेहतर होगा कि हकीकत को जान कर मां, बाबूजी, रश्मि और दूसरे लोग मेरी मौत के सदमे को झेलने के लिए खुद को पहले से ही तैयार कर लें.’’ राहुल ने भारी आवाज में कहा.
‘‘मैं भी ऐसा ही चाहूंगी. मगर तुम को एड्स है, मैं ऐसा कभी जाहिर नहीं होने दूंगी. ऐसी दूसरी लाइलाज बीमारियां भी तो हैं जिन से इनसान की मौत यकीनी होती है, जैसे कैंसर. किंतु कैंसर की मौत एड्स से होने वाली मौत से कहीं अधिक सम्मानजनक है. कैंसर डरावना है और एड्स बदनाम. एड्स के बारे में लोगों में अनेक गलतफहमियां हैं. इसलिए कैंसर से तो केवल इनसान मरता है लेकिन एड्स से मरने वाले इनसान के परिवार की उस के साथ ही सामाजिक मौत हो जाती है.
एड्स से मरने वाले इनसान के परिवार को लोग शक और घृणा की नजरों से देखते हुए एक तरह से उस का सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे बाद तुम्हारे अपनों के साथ कुछ ऐसा हो. एक एड्स संक्रामक व्यक्ति की पत्नी होने के कारण समाज में मेरी क्या स्थिति होगी इस की शायद तुम ठीक से कल्पना भी नहीं कर सकते. हमारे विवाहित जीवन के अंदरूनी सच को दुनिया तो नहीं जानती. मैं एक शापित जीवन बिताऊं, ऐसा तो तुम भी नहीं चाहोगे,’’ राहुल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूजा ने कहा.
राहुल की समझ में आने लगा था कि पूजा उस की बीमारी को किन कारणों से छिपा कर रखना चाहती थी. उस की सोच में केवल आज नहीं, आने वाला कल भी था.
जैसेजैसे वक्त करीब आ रहा था राहुल अंदर से टूट रहा था. अपने प्यार से पूजा टूट रहे राहुल को सहारा देने की कोशिश करती.
डाक्टर को दिखलाने की बात कह कर पूजा राहुल को साथ ले कर घर से बाहर जाती. किसी पार्क या रेस्तरां में 2-3 घंटे बिता कर दोनों वापस आ जाते. राहुल एड्स की दवाएं ले रहा था, मगर वे बेअसर हो रही थीं.
ऐसी स्थिति बन रही थी कि पूजा को लग रहा था कि उस को राहुल की बीमारी को ले कर एक और झूठ बोलना ही होगा.
एक रोज मांजी ने पूजा को हाथ से पकड़ अपने पास बिठा लिया और बोलीं, ‘‘राहुल की यह कैसी बीमारी है बहू जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही? तुम जरूर मुझ से कुछ छिपा रही हो. मुझ को किसी धोखे में मत रखो. मैं राहुल की बीमारी का सच जानना चाहती हूं.’’
‘‘मैं आप से कुछ भी छिपाना नहीं चाहती, मांजी, लेकिन सच बड़ा ही निर्मम और कठोर है. आप सुन नहीं सकेंगी. आप के बेटे को कैंसर है,’’ हिम्मत कर के पूजा को जो कहना था उस ने कह दिया.
उस के शब्द जैसे बम बन कर मांजी के सिर पर फूटे. सदमे में अपना माथा पकड़ते हुए वह सोफे पर लुढ़क सी गईं.
उधर सच को छिपाने के लिए पूजा ने जो झूठ बोला उस का चेहरा छिपाए गए सच से कम डरावना नहीं था.
पूजा के द्वारा राहुल की बीमारी को कैंसर बतलाने के बाद घर का सारा माहौल ही गमगीन और मातमी हो गया था.
मांजी, बाबूजी और रश्मि की आंखों में से बहने वाले आंसू जैसे थम नहीं रहे थे. कोई ठीक से खा नहीं रहा था. कैंसर का भी दूसरा नाम मौत ही तो था. जब मौत का पहरा बैठ गया हो तो किसी को चैन कैसे आ सकता था?
अंत शायद बहुत करीब था. राहुल का शरीर इतना कमजोर हो गया था कि कई बार बाथरूम तक जाने के लिए उसे पूजा के सहारे की जरूरत पड़ती.
पूजा किसी तरह भी कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. हालांकि राहुल की बातें कभीकभी उस को कमजोर करने की कोशिश जरूर करती थीं.
मांजी और बाबूजी बेटे की हालत देख उस को किसी अस्पताल में दाखिल कराने की बातें करते.
लेकिन पूजा इस से मना कर देती.
‘‘इस से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कैंसर अपने अंतिम स्टेज में है. अस्पताल में रेडियो थेरैपी से इन की जिंदगी और ज्यादा कष्टपूर्ण हो जाएगी. मैं ऐसा नहीं चाहती,’’ पूजा उन से कहती.
राहुल की अंदर को धंसती निस्तेज आंखें और पीला चेहरा खामोश जबान में बतलाने लगे थे कि उस के जीवन की टिमटिमाती लौ किसी भी घड़ी बुझ सकती थी.
एक रात अचानक राहुल ने पूजा के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए वे शब्द कहे तो पूजा को लगा वह घड़ी कुछ फासले पर ही है.
‘‘शायद मेरा वक्त आ गया है मेरे हमसफर. मेरी जिंदगी के उदास सफर में हमसफर बनने के लिए शुक्रिया. दुनिया और समाज कुछ भी समझे, मगर हम दोनों जानते हैं कि हमारे बीच में पतिपत्नी नहीं, दो इनसानों का रिश्ता है. इसलिए मेरे मरने के बाद कभी अपनेआप को विधवा मत मानना. अपने लिए जो भी विकल्प ठीक लगे उसी को चुनना.’’
राहुल के उक्त शब्द पूजा के मर्म को चीर गए.
बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला था.
राहुल ने पूजा से कमरे की खिड़की खोलने का अनुरोध किया और यह भी कहा कि वह उस के पास बैठी रहे.
खिड़की के बाहर चांद चमक रहा था. रात ढल रही थी.
राहुल की बेचैनी भी लगातार बढ़ रही थी.
पूजा हौसला देने वाले अंदाज से बीचबीच में उस के ललाट पर अपना हाथ फेर देती थी. डाक्टर के बताए अनुसार उस ने राहुल को दवा दी तो उस ने आंखें बंद कर लीं.
बैठेबैठे ही न जाने कब पूजा को कुछ मिनटों के लिए नींद की झपकी आ गई.
झपकी जब टूटी तो सब खत्म हो चुका था. राहुल की खुली आंखें पथरा चुकी थीं.