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जेल की जिस अंधेरी कोठरी में विक्रम सजा काट रहा था, उस की दीवारों पर बस एक ही नाम लिखा था, राधा. सिर्फ जेल की दीवारों पर ही नहीं, बल्कि राधा का नाम तो विक्रम के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राधा ही वह नाम था, जिसे मौत भी विक्रम की जिंदगी से नहीं मिटा सकती थी.

विक्रम राधा से प्यार ही नहीं करता था, बल्कि उसे जुनून की हद तक चाहता भी था.

जिस कालकोठरी में लोग रोरो कर अपना समय काटते थे, वहां विक्रम के दिनरात राधा की यादों, खयालों और ख्वाबों में गुजरते थे. हर पल राधा से मिलने की तड़प और इंतजार ने उसे अब तक सलाखों के पीछे जिंदा रखा था, वरना वह कब का दुनिया को अलविदा कह चुका होता.

विक्रम लावारिसों की तरह एक अनाथालय में पलाबढ़ा था. उस के मांबाप का पता नहीं था. उस ने बचपन से ही हर ख्वाहिश के लिए मन मारना सीखा था.

जब अनाथालय की चारदीवारी में उस का दम घुटने लगा, तो एक दिन विक्रम भाग निकला.

पेट भरने के लिए पहले उस ने मजदूरी की, लेकिन जब पेट नहीं भरा, तो लोगों से पैसे छीनने लगा. 2-4 साथी मिल गए, तो एक गिरोह बना लिया.

इस के बाद विक्रम अपराध के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि बड़े गिरोह का सरदार बन गया. आलीशान कोठी ले ली और पुलिस से छिपने के लिए वह शहर से दूर उसी कोठी का सहारा लेता था.

एक दिन बाजार में घूमतेघूमते विक्रम की नजर एक खूबसूरत चेहरे पर पड़ी. यह चेहरा राधा का था. राधा ने जैसे उस के चेहरे पर एक जादू सा कर दिया था.

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