कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पल भर के लिए राधा सोच में पड़ गई, ‘‘यह आदमी जो मेरा गुनाहगार है... इस ने यह सब आखिर किया किसलिए? मुझे पाने के लिए न. क्या यही इस का जुर्म है कि इस ने मुझ से बेइंतहा प्यार किया. भले ही इस का तरीका गलत था, लेकिन चाहा तो मुझे बेपनाह ही था. लेकिन यह भी सच है कि इस चाहत में इस ने मेरा सबकुछ छीन लिया. मुझे बरबाद कर दिया. उस की सजा तो मैं इसे जरूर दूंगी. इतनी भयानक सजा दूंगी, जो यह सोच भी नहीं सकता.’’

विक्रम फिर बोला, ‘‘सोच क्या रही हो राधा, चलाओ गोली. आज तुम्हारे सामने तुम्हारा गुनाहगार खड़ा है. मार दो मुझे.’’

‘‘विक्रम...’’ तभी बाहर लाउडस्पीकर से तेज आवाज आई.

विक्रम ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा. बाहर चारों तरफ पुलिस फैली हुई थी. इंस्पैक्टर रमेश के हाथ में माइक था. पुलिस की बंदूकें विक्रम की कोठी की ओर तनी हुई थीं.

‘‘विक्रम, अपनेआप को पुलिस के हवाले कर दो,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फिर से लाउडस्पीकर से बोला.

‘‘हा...हा...हा...’’ चंदू ठहाके मार कर हंसा, ‘‘अब तुम मरोगे उस्ताद, पुलिस आ चुकी है. अब मेरे हाथों में होगा इनाम और तुम्हारी किस्मत में कालकोठरी या पुलिस की गोली. हा... हा... हा...’’ चंदू की हंसी गूंजने लगी.

विक्रम राधा से बोला, ‘‘राधा, जल्दी से खत्म कर दो मुझे. मैं पुलिस के हाथों गिरफ्तार होने के बजाय तुम्हारे हाथों से मरना पसंद करूंगा. तुम्हारी नफरत को अपने खून के कतरों से मिटा कर मुझ मर कर भी सुकून मिलेगा. राधा, जल्दी करो.’’

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से मरने नहीं दूंगी विक्रम. तुम ने मुझे बहुत तड़पाया है. तुम्हें तो मौत से भी बदतर जिंदगी दूंगी मैं. मुझे पाने के लिए जो जुल्म तुम ने किए हैं, उन जुल्मों की यही सजा है कि मैं तुम्हें कभी न मिलूं. तुम जिंदा रहोगे, लेकिन मुझे कभी हासिल नहीं कर सकोगे. मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी... कभी नहीं...’’ और राधा ने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर लगा कर ट्रिगर दबा दिया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...