संस्कृत के एक जानकार ने लिखा है :
यथा मोबाइलयंत्रं युवकानां वृद्धानां कृत्रिमदंता: यथा.
गृहस्थमनोरंजन वस्तुनां रिमोटयंत्रं मूर्धनिस्थितम्.
अर्थात जिस प्रकार युवाओं के लिए मोबाइल व वृद्धों के लिए उन के नकली दांत का महत्त्व होता है उसी प्रकार घर में उपलब्ध मनोरंजक वस्तुओं में रिमोट ही प्रधान होता है.
दूरदर्शकयंत्र यानी टेलीविजन घरों की एक अभिन्न वस्तु है. हमारे लिए रोटी की तरह टीवी दर्शन भी जरूरी है. पहले तो इकलौता चैनल दूरदर्शन ही हुआ करता था इसलिए उस समय तो बस, टीवी चालू कर लीजिए और आराम से बैठ कर दूर के दर्शन कीजिए. एक ही चैनल होने से टीवी के रिमोट की भी जरूरत नहीं होती थी.
आज कम से कम 80-100 प्रकार के चैनल हैं. विविध रुचि वाले लोगों के लिए विविध प्रकार के चैनल हैं. पता नहीं लोगों की विविध प्रकार की रुचियों को देख कर इतने सारे चैनल बने या इतने सारे चैनलों को देख कर लोगों में विविध प्रकार की रुचियों ने जन्म लिया. कारण कुछ भी हो लेकिन घर का हर सदस्य अपनी रुचि के अनुसार ही चैनल देखना चाहता है.
इस के लिए एक ही रास्ता है कि टीवी का रिमोट उस के हाथ में हो. जिस के हाथ में रिमोट होता है उस की स्थिति किसी राजा के समान होती है. वह अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम देख सकता है. घर के दूसरे सदस्य देखना चाहें या न चाहें लेकिन रिमोटधारक के मनपसंद कार्य- क्रम उन को झेलने ही पड़ते हैं.
आज के दौर में टीवी के रिमोट का महत्त्व तिजोरी की चाबी के समान हो गया है. जिस प्रकार हर घर में तिजोरी की चाबी घर के सब से प्रमुख व्यक्ति के पास होती है, उसी प्रकार रिमोट भी घर के सब से प्रमुख व्यक्ति के हाथ में होता है. वह व्यक्ति जब घर में नहीं होता या टीवी दर्शन से गले तक संतुष्ट हो जाता है तभी अन्य सदस्यों को रिमोट प्राप्त होता है.