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‘‘मैं कोतवाली जाता हूं. आप बेफिक्र रहिए, रजाक छूट जाएगा,’’ वसीम दूसरे कमरे की ओर बढ़ते हुए बोले, तभी वहां शमीम पहुंच गई. अमीना बेगम को देख कर वह भी चौंक पड़ी. ‘‘बहू... लगता है, तुम अभी भी मुझ से नाराज हो.’’ ‘‘यह आप ने कैसे समझ लिया अम्मी. मैं तो यह सोच रही थी कि कितने समय बाद हम ने एकदूसरे का सामना किया है और वह भी इस एहसास के साथ कि बेटे चाहें 10 हों, अगर उन में से कोई भी लायक न बन सके, तो परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.

‘‘बेटी चाहे एक हो, अगर उस की परवरिश ठीक ढंग से हो जाए, तो वह भी अपने खानदान का नाम रोशन कर सकती है, जैसे मेरी बेटी...’’ शमीम ने फख्र से अपनी बेटी की ओर देखा. ‘‘तुम ठीक कहती हो बहू,’’ अमीना बेगम की आवाज में हार की सी बोझिलता थी, ‘‘उस समय मैं नईपुरानी पीढ़ी के फर्क को समझ न सकी थी. मुझे सोचना चाहिए था कि वसीम नए जमाने का नौजवान है. उस की सोच और उस के इरादे जरूर ही एक नए समाज की रोशनी वाले हैं. ‘‘मेरी जिद और अंधविश्वास ने अनवर का जीवन बरबाद कर दिया. अगर वसीम की तरह उस ने भी पढ़लिख कर अपना भविष्य संवारा होता और उस का भी परिवार छोटा होता तो आज वह इतनी बदहाली में न होता, न उस के बच्चे बिगड़ते.’’ शाम को वसीम आया और बोला,

‘‘अम्मी, रजाक को पुलिस ने रिहा कर दिया है. वह वापस घर चला गया है.’’ ‘‘तुम बहुत अच्छे हो बेटा...’’ अमीना बेगम बोलीं. ‘‘अम्मी, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, यहीं रहेंगी हमारे पास.’’ ‘‘लेकिन, अनवर बीमार है. वह क्या सोचेगा?’’ ‘‘आप उस की बिलकुल भी चिंता न करें. अब हमारी नीलो अपने चाचाजान का भी इलाज करेगी और मैं उस के बच्चों का भविष्य सुधारने की कोशिश करूंगा.’’ ‘‘तुम इनसान नहीं फरिश्ते हो बेटा...’’ अमीना बेगम की आंखों में पानी भर आया. ‘‘और मैं दादीजान, मैं कैसी हूं?’’ नीलोफर शरारत से मुसकराई. ‘‘तुम तो मेरी चांद हो... 100 बेटों से बढ़ कर हो,’’ अमीना बेगम नीलोफर के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं.

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