कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सांझ हो गई थी. शमीम अपने मकान की बैठक में आरामकुरसी पर बैठी हुई थी. उस के सामने दीवार पर एक फोटो टंगा हुआ था. यह फोटो उस की बेटी नीलोफर का था, जिसे वह प्यार से ‘नीलो’ कहती थी. कई साल बाद उस की बेटी अपनी पढ़ाई पूरी कर के उस दिन घर लौट रही थी. शमीम के पति वसीम उसे लाने के लिए रेलवे स्टेशन गए हुए थे. नीलोफर कोटा में रह कर नीट की तैयार कर रही थी और उस के साथ ही 1-2 और परीक्षाओं की कोचिंग उस ने ले रखी थी.

वसीम ने कहा तो शमीम से भी था कि वह भी उस के साथ चले, पर वह घर पर रह कर अपनी बेटी की आवभगत की तैयारी करना चाहती थी. फिर उसे अपनी बेटी की मनपसंद ढेर सी चीजें भी तो बनानी थीं. शमीम ने सारा सामान तैयार कर लिया था और अपने पति व बेटी की राह देख रही थी. नीलो का फोटो देखतेदेखते अचानक कुछ कड़वी यादें उभर आईं. नीलो के जन्म के समय उस की जिंदगी में कितना भयंकर तूफान आतेआते रह गया था... उस दिन वह अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी. वार्ड के बाहर वसीम अपनी अम्मी अमीना बेगम के साथ बेचैनी से चहलकदमी कर रहे थे. वार्ड का दरवाजा खुलते ही वसीम ने लपक कर डाक्टर मालिनी से पूछा था,

‘‘डाक्टर... शमीम कैसी है?’’ ‘‘हालात तो काफी नाजुक थे, पर बहुत कोशिश के बाद तुम्हारी बीवी और बेटी की जान बच गई, लेकिन...?’’ ‘‘लेकिन, क्या डाक्टर...?’’ ‘‘अब शमीम कभी मां न बन सकेगी...’’ एक पल के लिए वसीम सन्नाटे में आ गया था, लेकिन तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया और मुसकरा कर बोला, ‘‘सच... हमारे घर बेटी आई है...’’ फिर वसीम ने जैसे ही वार्ड में जाना चाहा, अमीना बेगम चीख पड़ीं, ‘‘ठहरो वसीम...’’ वसीम ने पलट कर अपनी अम्मी की ओर देखा, ‘‘अम्मी, क्या बात है?’’ ‘‘तुम शमीम से नहीं मिलोगे...’’ ‘‘लेकिन, क्यों अम्मी...?’’ वसीम ने अचरज भरी नजर से अपनी अम्मी की ओर देखा. ‘‘इसलिए कि शमीम तुम्हारे लिए मुसीबत बन कर आई है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...