अंबाला शहर. अब्दुल मियां सुबहसुबह चाय पी रहे थे कि तभी उन के बेटे राशिद का फोन आया... ‘‘हैलो, हां बेटा, कहो...’’ ‘आप ने आज अखबार देखा?’ ‘‘नहीं... मैं चाय पी रहा हूं. अभी पढ़ता हूं... कोई खास खबर...?’’ ‘आप जल्दी से अखबार देखिए... फूफी की तसवीर छपी है...’ ‘‘सावित्री बहन की...? क्या हुआ सावित्री बहन को...?’’ अब्दुल मियां चिंतित हो गए. ‘देखिए तो...’ अब्दुल मियां ने अखबार देखा. सावित्री की तसवीर के नीचे लिखा था, ‘यह औरत अंबाला रेलवे स्टेशन पर मिली है. जो कोई इसे या इस के बेटों को जानता हो, इत्तिला करें. यह यमुनानगर के वृद्धाश्रम में है’.

साथ में एक फोन नंबर भी दे रखा था. खबर पढ़ कर अब्दुल मियां के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वे उसी समय यमुनानगर में अपने एक दोस्त को फोन मिलाने लगे, ‘‘कादिर मियां, कैसे हो?’’ ‘मियां, बहुत दिनों बाद याद किया. कोई खास बात है?’ ‘‘क्या यमुनानगर में ‘मेरा घर’ नाम का कोई वृद्धाश्रम है?’’ ‘हां है. क्या हुआ?’ ‘‘वहां का रहनसहन, खानपान कैसा है? वे बुजुर्गों को ठीक से रखते हैं न?’’ ‘बहुत अच्छा है. वृद्धाश्रम चलाने वाले कोई मेहराजी हैं. दोनों पतिपत्नी का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने घर को ही वृद्धाश्रम बना लिया है. जो भी कोई बुजुर्ग, बेसहारा या बच्चों का सताया होता है,

वह यहीं आता है. सब एक परिवार की तरह रहते हैं... लेकिन हुआ क्या?’ ‘‘कुछ नहीं...’’ कह कर अब्दुल मियां ने फोन रख दिया. फिर 4 दिन बाद यमुनानगर वृद्धाश्रम में फोन से सावित्री बहन के बारे में पूछने पर पता चला कि कोई उन्हें लेने नहीं आया और वे खुद सावित्री बहन को लेने चल पड़े. वृद्धाश्रम चलाने वाले मेहराजी को तसवीर दिखा कर अब्दुल मियां ने पूछा, ‘‘भाई साहब, ये औरत यहीं हैं?’’ मेहरा साहब ने कहा, ‘‘जी हां, पर आप कौन हैं?’’ ‘‘मैं उन का भाई हूं और उन्हें लेने आया हूं.’’ ‘‘क्या आप अब्दुल मियां हैं?’’ ‘‘जी हां, मगर आप को मेरा नाम कैसे पता चला और आप को सावित्री बहन कैसे मिलीं?’’ ‘‘मैं अपने एक दोस्त को कटरा के लिए अंबाला रेलवे स्टेशन पर छोड़ने गया तो देखा कि वहां एक औरत सब से बहस कर रही थी. मैं ने वहां के चाय वाले से पूछा, तो उस ने बताया कि इस औरत का बेटा उसे छोड़ कर चला गया है. सुबह से भूखी बैठी है और कह रही है कि उस का बेटा आ कर उसे ले जाएगा, लेकिन सब कह रहे हैं कि वह नहीं आएगा.

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